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बिहार आर्ट थियेटर की प्रस्तुति "नेफा की शाम" नामक नाटक से हुई शुरुआत, 26 से 28 नवंबर तक कालिदास रंगालय में चलेगा उत्सव मौसम।



कथासार
*नेफा की एक शाम*
मातई के दोनों बेटे निम्मो और देवल के बीच कटुता का कारण है सुहाली।
नीमो जहां सुहाली के प्रेम पास में बंधा होता है वही देवल सरदार गोगो के साथ एक गुप्त गुरिल्ला संगठन बनाकर चीनी सेना का प्रतिरोध करता है।
घायल चीनी जासूस बागचू को मातई ही बचाती है परंतु बाद में वही वांगचु देवल और गोगे को मारना चाहता है, तभी मातई का बड़ा बेटा निमो बांगचू के गतिविधियों कुछ समझ जाता है और बड़ी समझदारी से वांगचू और साथी फुंगशी को मार गिराता है।



चीनियों के कैद से भागा भारतीय फौजी मातई का स्नेह पाकर गर्व महसूस करता है और फिर से लड़ाई के लिए चला जाता है।
चीनी आक्रमण में अनाथ हुई शिकाकाई मातई के शरण में आकर देवल की पत्नी बन चीनियों से लोहा लेती है।
चीनी कैंप की जासूस और नीमो को अपने प्रेमपाशा में बांध कर रखने वाली सुहाली नींमो के हाथों मारी जाती है।
मातई के दोनों बेटे नीमो और देवल चीनियों को सियांग नदी पार करने से रोकने मे सफलता प्राप्त करते हैं और देश के लिए शहीद हो जाते हैं।
मातई वीरांगना की तरह अपने बेटों को मातृभूमि की वेदी पर बलि देकर भी विचलित नहीं होती है और विजय का बिगुल सुन कर शिकाकाई को गले लगा उसे ढांढस बनाती है।



चीनी आक्रमण के समय अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए सियांग नदी के तट पर
आदिवासियों के शौर्य
और बलिदान को चित्रित करता है - *नेफा की एक शाम*

*कलाकार अभिनय पक्ष*

मातई : अनिता कुमारी वर्मा
नीमो : डॉक्टर सुभाष कृष्ण
देवल: रणविजय सिंह
गोगो : विष्णु देव कुमार विशु 
शिकाकाई : प्रतिज्ञा भारती
सुहाली : रूपाली चौधरी
फौजी : आशुतोष निर्भय
वांगचू : रवि पांडे 
फुंगशी :  सुमित आर्य

लेखक : ज्ञानदेव अग्निहोत्री
*निर्देशक : अरुण कुमार सिन्हा*