- मानव सेवा को माधव की सच्ची सेवा मान कर टीबी पीड़ितों की सेवा में जुटे हैं गोपाल
- लोगों के मन में टीबी को लेकर व्याप्त गलत धारणाओं को दूर करने के प्रयास के कारण हुए सम्मानित
- टीबी चैंपियन के रूप में गांव-गांव घूम कर रोग से बचाव व इलाज के लिए लोगों को कर रहे जागरूक
अररिया, 08 दिसंबर ।।
SON OF SIMANCHAL GYAN MISHRA
मानव सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है। स्वामी विवेकानंद के इस कथन ने हममें से कुछ युवाओं के जीवन को नया अर्थ दिया है। ऐसे ही एक युवा में गोपाल कुमार झा का नाम भी शामिल हैं। अररिया प्रखंड के गिलाहबाड़ी गांव निवासी 38 वर्षीय गोपाल झा ने तो इसी उक्ति में अपने जीवन का पूरा सूत्र ढूंढ़ लिया है। कभी टीबी संक्रमण की चपेट में आकर जिंदा रहने की उम्मीद छोड़ चुके गोपाल आज टीबी उन्मूलन की दिशा में किये जा रहे अपने प्रयासों के कारण एक नजीर के तौर पर देखे जाते हैं। राज्य स्तर से उन्हें टीबी चैंपियन का खिताब हासिल हो चुका है। जिलास्तर पर भी उनके प्रयासों को कई बार सराहा व पुरस्कृत किया गया है। टीबी मुक्त वाहिनी की राज्यस्तरीय बैठकों में गोपाल की अपनी अलग धमक रहती है। जिला यक्ष्मा केंद्र सहित तमाम सहयोगी संस्था के बीच गोपाल को बेहद सम्मान हासिल है।
लोगों के नजरिया में सकारात्मक बदलाव लाना उद्देश्य
गोपाल बताते हैं कि टीबी को लेकर आज भी हमारे समाज में कई तरह की भ्रांतियां व्याप्त हैं। टीबी मरीजों को लेकर घृणा का माहौल आज भी है। यही एक चीज है जो उन्हें सबसे अधिक सालता है। संक्रमित होने के बाद भी लोग रोग को छुपाते हैं। जो बाद में भयावह रूप में प्रकट होता है। जिस कारण हम में से कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। रोग के प्रति इसी घृणा और अविश्वास के माहौल में सकारात्मक बदलाव लाना टीबी चैंपियन गोपाल अपना उद्देश्य मानते हैं।
कभी खत्म हो चुकी थी जिंदा रहने की उम्मीद, चैंपियन हैं अभी
अपनी आपबीती सुनाते हुए गोपाल बताते हैं कि फरवरी 2019 में उन्हें एक बार बुखार हुआ। जो छूटने का नाम ही नहीं ले रहा था। तमाम दवा, झाड़-फूंक सब बेअसर साबित हो रहा था। धीरे-धीरे गोपाल ही नहीं उनके परिवार वालों ने भी उनके जीवित रहने की उम्मीद तक छोड़ दी। फिर कुर्साकांटा में एक निजी चिकित्सक ने उन्हें पूर्णिया जाकर जांच की सलाह दी। जांच में ग्लैंड टीबी का मामला सामने आया। टीबी का नाम सुनते ही गोपाल को लेकर उनके दोस्त व परिजनों के नजरिया में आये बदलाव के बारे में सोच कर गोपाल आज भी भावुक होते हैं। अररिया यक्ष्मा केंद्र की देखरेख में लगतार छह माह दवा सेवन से गोपाल की सेहत में मामूली सुधार हुआ। लेकिन मर्ज अब भी पूरी तरह ठीक होने का नाम नहीं ले रहा था। ऐसे में जिला टीबी व एड्स समन्वयक दामोदर प्रसाद गोपाल के लिये मसीहा के रूप में सामने आये। उनकी सलाह व देखरेख में दवा अगले छह माह निरंतर जारी रहा। इससे वे अब पूरी तरह ठीक हैं।
अपने फर्ज को शिद्दत से दे रहे हैं अंजाम
मार्केटिंग के व्यवसाय से जुड़े गोपाल बताते हैं कि वे नहीं चाहते हैं कि टीबी के कारण जो परेशानी उन्हें उठानी पड़ी। किसी दूसरे को भी इसका सामना करना पड़े। बीमारी के दिनों में ही उन्होंने रोग पीड़ित दूसरे लोगों की सेवा का संकल्प ले लिया था। टीबी को मात देने के बाद दूसरे मरीजों तक समय पर दवा पहुंचाने के लिये वे कुरियर मेन की तरह अपनी सेवा देने लगे। जहां जाते लोगों को रोग के कारण व बचाव के प्रति जागरूक करते। अपनी इस जिम्मेदारी का आज भी वे सफल निवर्हन कर रहे हैं। ग्रामीण चिकित्सक व आम ग्रामीणों के बीच वे टीबी रोग पर खुल कर चर्चा करते हैं। वे कहते हैं, “जब जांच व इलाज नि:शुल्क है। सरकार रोगी को आर्थिक सहायता दे रही है। तो फिर रोग को लेकर घबराना कैसा”। हालांकि इस कार्य के लिये उन्हें कोई सरकारी मदद नहीं मिलती। बावजूद मानव सेवा को माधव की सेवा मानकर अपने फर्ज को अंजाम देने की मुहिम में गोपाल शिद्दत से जुटे हुए हैं।