- सुरक्षित प्रसव को लेकर सरकारी चिकित्सा संस्थानों पर बढ़ा है लोगों का भरोसा
- जिले में मातृ-शिशु स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में सुधार को लेकर हो रहा जरूरी प्रयास
- हाल के वर्षों में संस्थागत प्रसव संबंधी मामलों में हुआ है गुणात्मक सुधार
अररिया, 28 नवंबर ।
SON OF SIMANCHAL GYAN MISHRA
जिले में मातृ व शिशु संबंधी स्वास्थ्य सेवाएं हमेशा जटिलताओं से भरी रही हैं । सघन आबादी, उच्च प्रजनन, गरीबी, अशिक्षा व कम उम्र में युवतियों की शादी की वजह से मातृ मृत्यु दर का अनुपात राज्य के अन्य जिलों की तुलना में अधिक है। जिले का मातृ मृत्यु दर यानि एमएमआर रेट 177 है। वहीं नवजात मृत्यु दर यानि आईएमआर 43 है। जो राज्य के औसत से काफी अधिक है। एमएमआर प्रति एक लाख जीवित बर्थ पर होने वाली महिलाओं की मौत का दर्शाता है। वहीं आईएमआर प्रति एक हजार बच्चों के जन्म पर होने वाली मौत की संख्या को दर्शाता है। गौरतलब है कि मातृ मृत्यु व नवजात मृत्यु दर के मामलों में कमी लाने को लेकर हाल के दिनों में युद्ध स्तर पर प्रयास संचालित किये जा रहे हैं। इसे लेकर प्रथम तिमाही में गर्भवती महिलाओं की पहचान, चार एएनसी जांच व संस्थागत प्रसव सुनिश्चित कराने सहित कई अन्य इंतजाम किये गये हैं। लिहाजा संस्थागत प्रसव संबंधी मामलों में हाल के दिनों में अपेक्षित सुधार देखा जा रहा है।
बीते दो सालों में 15 से 20 फीसदी का हुआ गुणात्मक सुधार-
वर्ष 2019-20 में जारी एनएफएचएस 04 की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में प्रसव संबंधी 51.90 फीसदी मामलों का निष्पादन संस्थागत हो रहा था। जो 2019-20 में जारी एनएफएचएस 05 की रिपेार्ट में बढ़ कर 61.60 हो चुका है। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिये बीते दो साल के दौरान जिले में युद्धस्तर पर प्रयास किये गये हैं। लिहाजा इस दौरान संस्थागत प्रसव संबंधी मामले में 15 से 20 फीसदी गुणात्मक सुधार देखा जा रहा है।
प्रभावी साबित हो रही है कारगर रणनीति व सामूहिक प्रयास -
सिविल सर्जन डॉ विधानचंद्र सिंह बताते हैं संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने में विभाग की कारगर रणनीति कर्मियों का सामूहिक प्रयास बेहद प्रभावी साबित हो रहा है। समुदाय स्तर पर काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं से लेकर लेबर रूम में प्रतिनियुक्त कर्मियों के क्षमता संर्वद्धन पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
इतना ही नहीं प्रथम तिमाही के दौरान गर्भवती महिलाओं की पहचान को लेकर भी युद्धस्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। ताकि गर्भवती महिलाओं से संबंधित बेहतर डेटा का संधारण संभावित हो सके। इसे लेकर हर कदम बढ़ते कदम नाम से विशेष अभियान संचालित किये जाने की जानकारी उन्होंने दी।
एएनसी के अनुपात में संस्थागत प्रसव प्राथमिकता
डीपीएम स्वास्थ्य ने बताया एएनसी को प्रमुखता देने से स्थिति में बदलाव संभव हुआ है। जिला स्तरीय लक्ष्य को प्रखंड व प्रखंड स्तरीय लक्ष्य को वीएचएसएनडी सत्र के मुताबिक बांटा गया। प्रत्येक सत्र पर कम से कम 16 एएनएसी का लक्ष्य दिया गया। इससे इसमें चारों एएनएनसी के मामलों में 20 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी संभव हो सका। अब संस्थागत प्रसव को बढ़ाने के लिेय चतुर्थ एएनसी के अनुपात में संस्थागत प्रसव सुनिश्चित कराने को लेकर युद्धस्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं। प्रसव संबंधी सुविधाओं को भी विस्तारित किया गया है। पूर्व में जहां जिले में 31 एलआर सेंटर थे। वहीं वर्तमान में इसकी संख्या बढ़ कर 62 हो चुकी है। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने में ग्रामीण इलाकों में संचालित हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ है। प्रत्येक माह हर एक प्रखंड में एक वेलनेस सेंटर पर प्रसव सेवा बहाल करने को लेकर काम किया जा रहा है। अगस्त माह में 1823 से अधिक प्रसव महज वेलनेस सेंटर पर संभव हो पाया है।