अररिया से ज्ञान मिश्रा की रिपोर्ट :
लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ किये जाने वाले सामाजिक भेदभाव को लैंगिक असमानता या लैंगिक भिन्नता कहा जाता है। सृष्टि की वृद्धि में स्त्री और पुरुष की एक समान भूमिका होती है। स्त्री−पुरुष के संयोग से उत्पन्न होने वाली सन्तान जब प्राकृतिक रूप से लिंग विकृति का शिकार होकर जन्म लेती है, तब उसके प्रति समाज का भेदभाव पूर्ण रवैया समझ से परे होना स्वाभाविक है। मनुस्मृति के अनुसार पुरुष अंश की तीव्रता से नर तथा स्त्री अंश की तीव्रता से स्त्री सन्तान का जन्म होता है। परन्तु जब दोनों का अंश एक समान होता है तब तृतीय लिंग का शिशु जन्म लेता है या फिर नर−मादा जुड़वां सन्तानें पैदा होती हैं। समाज ने तृतीय लिंग वाली सन्तान का नामकरण क्लीव, हिजड़ा, किन्नर, शिव−शक्ति, अरावानिस, कोठी, जोगप्पा, मंगलामुखी, सखी, जोगता, अरिधि तथा नपुंसक आदि अनेक नामों से किया है। क्लीव और किन्नर संस्कृत भाषा के शब्द हैं, जबकि हिजड़ा उर्दू शब्द है। जो कि अरवी भाषा के हिज्र से बना है। जिसका अर्थ होता है कबीले से पृथक।
भारत के प्राचीन इतिहास में किन्नरों का समाज में एक सम्मानीय स्थान रहा है और इन्हें गायन विद्या का मर्मज्ञ माना जाता था। तुलसीदास जी ने “सुर किन्नर नर नाग मुनीसा” के माध्यम से किन्नरों के उच्च स्तरीय अस्तित्व को रेखांकित भी किया है। हालांकि सामाज का एक बड़ा वर्ग किन्नर और हिजड़ों को अलग−अलग मानता है। किन्तु जब किन्नर शब्द के अर्थ पर विचार किया जाता है तो किन्नर शब्द का अर्थ है विकृत पुरुष और यह विकृति लैंगिक भी हो सकती है। जबकि कुछ विद्वान इसका अर्थ अश्वमुखी पुरुष से करते हुए किन्नरों को पुरुष और ऐसी स्त्रियों को किन्नरी कहते हैं। वर्तमान समय में किन्नर का आशय हिजड़ों से ही लिया जाता है।
भारतीय संविधान के भाग−3 के अनुच्छेद 14 से 18 तक सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है। अर्थात् जाति, धर्म, जन्म−स्थान और लिंग के आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव करना पूर्णतया गैरकानूनी है। इस तरह राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लिंग भेद को पूर्णतया वर्जित माना गया है। इसके बावजूद भी किन्नरों के प्रति समाज का रवैया पूरी तरह से भेदभाव वाला ही है। इसके बावजूद कई ऐसे किन्नर हैं जिन्होंने समाज की इस विकृत सोच से जूझते हुए स्वयं को लीक से हटकर खड़ा करने में सफलता प्राप्त की। उनमें से एक हैं सोनाली किन्नर। सम्मानित परिवार से आने वाली सोनाली किन्नर मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में घर से निकल गयी। दिल्ली में रानी किन्नर के संपर्क में आई और फिर वहाँ से किन्नरों की दुनियाँ ने सोनाली को अपना लिया। हालाँकि सोनाली के पिता ने उन्हें वापस घर लाया भी, लेकिन सामाजिक तानों से त्रस्त और परिजनों के चिंता को देखते हुए सोनाली फिर घर से भाग रानी किन्नर के पास चली गयी।
ये अंदाजा सहज लगाया जा सकता है कि जब आज भी आधुनिकता का ढिंढोरा पीटने वाले किन्नरों के विषय में समाज की सोच संकीर्ण है तो 1985 में क्या स्थिति रही होगी। सोनाली ने अपना शिक्षा दिल्ली ओपन यूनिवर्सिटी से पूरा किया और आज अच्छा खासा कारोबार कर रही हैं। सोनाली ने कपड़े के बिजनेस को अपनाया और आज दर्जनों युवकों को सोनाली ने रोजगार दिया है। आज सोनाली लाखों की कारोबार करती हैं, और अपने किन्नर समाज के साथ साथ अन्य लोगों को भी रोजगार दे रही हैं। कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी सोनाली किन्नरों के लिए काम करने वाले संगठन से जुड़ी हैं। सोसवा, निपुण, मित्र, किन्नर वेलफेयर सोसाइटी से जुड़कर किन्नर समाज, समलैंगिक वर्ग, अशिक्षा, बाल यौन शोषण, के लिए कार्य भी कर रही हैं।
हम भले किन्नर समाज को किसी भी नजर से देखें, लेकिन वो अपने तरीके से समाज के बेहतरी के लिए हमेसा तैयार रहते हैं। सोनाली किन्नर, मात्र किन्नरों के लिए हिं नहीं बल्कि संपूर्ण समाज की बेहतरी के लिए कार्य करने वालों में से है। अपनी मुखरता से समाज में कई दुश्मन बना चुकी सोनाली भले हिं कठोर लगती हो लेकिन हैं बहुत नरम। कई विश्वसनीय लोगों से धोखा और आर्थिक नुकसान झेलने के बाद भी सोनाली कहती है “उसने अपना संस्कार दिखाया मैं तो बस दुआ हिं दूंगी।