मधुबनी से आशीष / फिरोज आलम की रिपोर्ट । जिले में मां दुर्गा को नाम आँखों से विदाई दी गई। पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया गया है। मां की विदाई की बेला में हजारों श्रद्धालु उनके पीछे पीछे चल रहे थे। पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया गया था खासकर जिन रास्तों से मां की विदाई की गाड़ी जाने वाली थी उन तमाम रास्तों को रंग अबीर गुलाल वह फूल की पंखुड़ियों से सजाया गया था।
नौ दिन विधि-विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा होने के बाद 10वें दिन यानी विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया गया। नगर के बाटा चौक स्थित गिलेशन वाली मैया एवं आर.के कॉलेज स्थित भगवती स्थान दुर्गा मन्दिर की प्रतिमा आज विसर्जन के लिये निकला तो श्रद्धालुओ की आंखे नम हों गई। मैया की चाल क़े साथ-साथ सभी श्रद्धालु गाजे-बाजे के साथ जगह-जगह पूजा अर्चना के साथ लोग शामिल हुये।
इस दौरान भक्तजनों ने सड़क की साफ-सफाई के साथ अति सुंदर रंगोली बनाई। कई स्वंयसेवी संगठनों द्वारा जगह-जगह स्टॉल लगाकर श्रद्धालुओं की स्वागत कर रहे थे। मां दुर्गा के अधिकांश व्रती विसर्जन के बाद ही नवरात्रि का व्रत समाप्त करतीं हैं। दोपहर में मां दुर्गा का विसर्जन किया गया। इसी दिन भगवान श्री राम ने राक्षस राज रावण को मारा था। वहीं देवी दुर्गा ने इस दिन असुर महिषासुर का वध किया था।
दशहरे के दिन शमी के पेड़ की पूजा करने का शास्त्रों में खास महत्व बताया गया है। ये सभी कार्य दोपहर के वक्त किए जाते हैं और रात के वक्त रावण को जलाया जाता है। रावण का दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। इस अवसर पर कई स्थानों पर नाच गाने के भी कार्यक्रम का आयोजन है। जिस प्रकार बेटियां अपनी ससुराल से मायके घूमने आती हैं और कुछ दिन बिताने के बाद वापस अपने घर यानी अपनी ससुराल चली जाती हैं।
उसी प्रकार मां दुर्गा भी अपने मायके यानी इस धरती पर आती हैं और 9 दिन के बाद फिर से अपने घर यानी शिवजी के पास माता पार्वती के रूप में कैलाश पर्वत पर चली जाती हैं। बेटियों को विदा करते समय उन्हें कुछ खाने-पीने का सामान और अन्य प्रकार की भेंट दी जाती है, ठीक उसी प्रकार विसर्जन के समय एक पोटली में मां दुर्गा के साथ भी श्रृंगार का सारा सामाना और खाने की चीजें रख दी जाती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि देवलोक तक जाने में उन्हें रास्ते में कोई तकलीफ न हो।