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39वाँ पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव के महाकुंभ का आज हुआ समापन




सांस्कृतिक संस्था "प्रांगण" द्वारा प्रेमचंद रंगशाला, पटना में दिनांक 2 से 6 फ़रवरी, 2025 तक 39वाँ पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा था, इस रंगमंच के महाकुंभ का आज समापन हुआ।




ये महोत्सव संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार तथा उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा प्रायोजित है।




आज दिनांक 6 फ़रवरी को नुक्कड़ मंच पर द लाइन एक्टिंग, पश्चिम बंगाल की प्रस्तुति "कहानी कल्प सृजन", निर्देशन : निशीथ मंडल।
संस्था वॉइस इन्टू थिएटर की प्रस्तुति "सुनोगे नहीं क्या" निर्देशिका : मंजरी मणि त्रिपाठी।




मुख्य मंच पर पहली प्रस्तुति सघन सोसायटी फॉर कल्चरल एंड वेलफेयर, भोपाल (मध्यप्रदेश) की प्रस्तुति "नकबेसर" (हिन्दी)
कहानी फणीश्वर नाथ रेणु,
नाटव रूपांतरण, परिकल्पना व निर्देशन : आनन्द मिश्रा




कथासार
यह नाटक फणीश्वरनाथ रेणु के आत्म-रेखाचित्र 'एक बुलन्द खुदी उर्फ मशहूर नकबेसर का किस्सा' एवं पांड्लेख पर केन्द्रित है। रेणुजी ने आत्मकथा को इस प्रकार लिखा है कि वह इस रेखाचित्र के माध्यम से कहते हैं कि जो चित्रगुप्त महाराज ने लिख दिया, वही उन्होंने जीवन में किया है। वे यह भी कहते हैं कि वित्रगुप्त ने उन्हें धरती की विशेष मांग पर भेजा है। वे पहले प्रकाशन से लेकर जीवन के संघर्ष जैसे मिठाई की दुकान की मैनेजरी, प्रतिष्ठित पुस्तकालय में लाइब्रेरियन, आल इण्डिया रेडियो, स्टूडेंट फेडरेशन्, किसान सभा, देश की आजादी, सशस्त्र क्रान्ति, गुरिल्ला लड़ाई, आजादी के लिये जेल यात्रा, लाठी खायीय यह सब उनकी रचना प्रक्रिया में दिखता है। उन्होंने जीवन में गांव से जो जीवन रस प्राप्त किया है. यह भी रचनाओं में रेखांकित होता हैं। उन्होंने ये भी कहा है कि रेणु जी अपने आरमकरधा में सच ही लिखेगें, ऐसा उन्होंने अपने मित्रो को वचन दिया था।





मंच पर
शिवेन्द्र सिंह, विशाल आचार्य, अनुज शुक्ला, प्रभाकर द्विवेदी, मुकेश गौर, हेमराज तिवारी, यश बलोदिया, शिवम रघुवंशी, पंकज पटेल, अक्श मिश्र, रत्नेश लोधी, अनुज शर्मा, भूमिका ठाकुर, अनुष्का शहारे, वर्षा पाण्डेय, आनन्दी मिश्रा, पुनम वर्मा

नेपथ्य
मंच व्यवस्थापक : मनीष नरेन्द्र, प्रकाश सहयोग : राम दास, वेशभूषा : रचना/उषा, 
रूम सज्जा : अर्चना/नमिता 
मंच सामग्री : राधेश्याम, 
पेन्टिंग : सुदेशना मिश्र, 
प्रकाश परिकल्पना / मंच आकल्पन/संगीत संयोजन : आनंद मिश्रा

दूसरी मंचीये प्रस्तुति नाटक "अतीत के वातायन" लेखक व गीतकार : अरुण सिन्हा, परिकल्पना व निर्देशन : अभय सिन्हा 





कथासार
"अतीत के वातायन" नाट्य रूपक है। इसमें स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की भागीदारी दर्शायी गयी है। इसमें भारत माता की बंदना की जाती है। सूत्रधार के रूप में बिहार की आत्मा आकाशवाणी के रूप में प्रकट होकर अपनी यात्रा का बखान करती है। आजादी की प्रथम लढाई के युग से कहानी शुरू होती है। संथाल विद्रोह, सिपाही विद्रोह आदि की चचर्चा के साथ-साथ भोजपुर के कुंवर सिंह आत्मोत्सर्ग की उपकथा चलती है। कुंवर सिंह की अंग्रेजों से बगावत और युद्ध के दौरान गोली लगे हाथ को स्वयं काटकर गंगा में प्रवाहित करने के दृश्य है। बीसवीं सदी में बंगाल का बंटवारा, स्वदेशी आदोलन, जिसमें बिहार के लोग बढ़–चढ़ कर हिस्सा लेते है और विदेशी वस्त्रों तथा सामानों की होलिका जलाते हैं। मुजफ्फरपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध पहला बम विस्फोट होता है।अंग्रेज जिला अधिकारी के अत्याचार से आक्रोशित खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी उनके बन्धी पर बम फेकते हैं। परन्तु वे बच जाते है। उनकी उस गाड़ी में दूसरे लोग सवार थे। खुदीराम बोस् को फांसी दी जाती है। उन्होंने हंसते गाते फांसी के फंदे को चूम लिया।




चंपारण में नील की खेत की है। नील की कोठियों में आताताई अंग्रेज रहते हैं, जो श्रमिकों पर तरह-तरह के अत्याचार करते है। उनकी बहन- बीबी – बेटिय उठा ले जाते हैं। एक किसान राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर महात्मा गाँधी चम्पारण आते है और यही से अंग्रेजों के विरुद्ध शंखनाद होते है। देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद, सच्चिदानंद सिन्हा, डॉ. अब्दुल बारी आदि बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों ने महात्मा गाँधी के अनुगमन किया। अँग्रेजों भारत छोडो के नारे से दिशा-दिशा गूंज उठी। विभिन्न कांतिकारी आदोलनों से गुजरते हुए सन् 1942 का साल आया। छात्रों ने सचिवालय पर तिरंगा फहराया और ब्रिटिश सैनिक की गोलियों से शहीद हुए। इनका स्मारक पटना में आज भी मौजूद है। भारत -पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर काफी गहमा-गहमी होती है और अंतत हिन्दू-मुस्लिम दंगों में परिणत हो जाती है। गाँधी जी के भूख हड़ताल के बाद दंगा खत्म होता है। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद होता है। पंडित नेहरू झंडोत्तोलन करते हैं और राष्ट्र को संदेश देते हैं। राष्ट्रीय गीत के साथ नाट्य रूपक समाप्त होता है। इस प्रकार सन् 1771 ई. से लेकर 1947 ई. तक स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की भूमिका को यह नाट्य रूपक रेखांकित करता है।

मंच पर
संजय सिंह, अमिताभ रजन, ओम प्रकाश, संजय कुमार, अतीश कुमार, अरविन्द कुमार, आशुतोष कुमार, सैंटी कुमार, प्रकाश भारती, सन्टू कुमार, राजेश कुमार पाण्डेय, अनिल वर्मा, सोमा चक्रवर्ती, सुरभि सिंह, काजल कुमारी, कृति कुमारी

मंच परे
मंच सज्जा : धनराज कुमार/प्रकाश भारती, 
वेशभूषा : सोमा चक्रवर्ती/अभय सिन्हा, 
संगीत सहयोगी : विकास कुमार ढोलक : दिनेश कुमार 
गायिका/कोरस : निशा सिंह/सोमा चक्रवती, 
गायक / कोरस: कुन्दन कुमार/राजेश कय/ दिनेश कुमार, निर्देशन सहयोग : संजय सिंह/सीमा चक्रवर्ती, 
प्रक्षेपण : अमित राज, 
प्रकाश परिकल्पना : रौशन कुमार 
परिकल्पना एवं मुख्य गायक : मनोरंजन ओझा
परिकल्पना व निर्देशन : अभय सिन्हा।

इसी के साथ 39वां पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव समाप्त होता, मैं आप का दिल से आभार व्यक्त करता हूं।