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लोक गायिका कल्पना पटवारी ने लोक भोजपुरी गीतों से बांधा समा, श्रोताओं हुए मंत्रमुग्ध।

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न्यूज़ डेस्क, पटना। कौन कहता है मगही गीतो में मिठास नहीं है। चाहे लोरी गीत, आरे आव बारे आव नदिया किनारे आव....हो या छठ गीत " मारबऊ रे सुगवा धनुष से ..."विवाह गीत "चलनी के चालल दुल्हा सुप के भंटकार हे..."होली -चैतार ,जट-जटीन गीत या फिल्मी लोक गीत " कुसुम रंग चुनरी मंगवा द पियवा .." हो।आपके गले मे वह सूर और दिल में मगही गायकी के लिए मुहब्बत होनी चाहिए।कल शाम प्रेमचंद रंगशाला में "रंग जलसा"समारोह में जब मशहूर भोजपुरी गायिका कल्पना पटवारी मगही फिल्म"देवन मिसर"का गाना "ऐ पंडित जी ओ पंडित जी,मत करिह तू अईसन काम...."का सूर लगाया तो रंगशाला तालिये की आवाज से गुंज उठा।दिल से निकली वाह,वाह की शोर से पूरा वातवरण मगहिया मय हो गया।

 हमारे हिन्दुस्तान में व्यापार के लिए अंग्रेजी में, व्यवहार के लिए हिन्दी में और प्यार के लिए लोक भाषा में बात की जाती है।मै सभी लोक भाषाओं की इज़्ज़त करता हुं।मगर मुझे किसी भाषा-बोली से प्यार मुहब्बत इश्क है तो वह है "मगही"।इसी इश्क ने मुझे मगही सिनेमा "देवन मिसिर "बनाने पर विवश कर दिया। हां यह बात दिगर है कि दिमाग का नहीं,दिल की बात सुनी और भावना में बहकर "एक खुबसूरत एक्सीडेंट हो गया ।"पर कभी-कभी चोट खाना भी मीठा दर्द दे जाता है। नहीं विश्वास है तो पुछिये उस मंजुनू से जिस ने अपनी-आपनी लैला से चोट खाया है। पता नहीं मेरी लैला कब कहेगी "कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को..."

   मैं मगहिया मजुनू अकेला नहीं हूं।हमारे साथ "देवन मिसिर " में रवि भुषण "बब्लू"और डा: रंजय कुमार भी है जो मन ही मन गीत गाते है " इश्क में इस कदर चोट खायें हुएं है.....!"हां हम तीनो मजुनू को इतना तो संतोष है। शाहजहां ने मुमताज की इश्क़ में ताजमहल इसलिए नहीं बनाया था कि उस पर टिकट लगा, पैसा कमाकर क़ब्र में चैन से सोया जाए।

  कल संजय उपाध्याय ने भी रंग जलसा समारोह में अपने थिएटर इश्क़ के लिए "टिकट फ्री" कर दिया था। यह इश्क का ही चक्कर है कि उन्होने मुझे आंमत्रित किया।कल्पना पटवारी से मगही सिनमा देवन मिसिर का गाना गाने का आग्रह किया। हां तीसरी कसम के राजकपूर की तरह "ईश" निकला कि मंच पर लोक भाषा से इश्क का इज़हार करने का मौक़ा नहीं मिला।खैर इश्क जिंदाबाद!थिएटर इश्क़ जिंदाबाद!