न्यूज़ डेस्क। किन्नरों की जिंदगी पर आधारित हिंदी नाटक "जानेमन" का पटना के प्रेमचंद रंगशाला में शुक्रवार को मंचन हुआ। एच एम टी, पटना की नवीनतम प्रस्तुति प्रसिद्ध मराठी लेखक, नाटककार, और गीतकार मच्छिंद्र मोरे को पूरी तरह समर्पित थी जिनकी हाल में ही मृत्यु हो गई थी।
नज्जो के अखाड़े की चेलन रंडी के माफिक धंधा नहीं कर सकती है सात अखाड़े में रौशन है मेरा अखाड़ा। चेलनो के साथ ही पूरे माहौल को अंतांकित करने वाले यह संवाद जानेमन नाम के उस नाटक के हैं जो भारतीय हिंदी रंगमंच में मील का पत्थर बनने जा रहा है, वजह,इसमें किन्नरों की जिंदगी कोली समाज में प्रचलित कई किस्सों,भ्रंतियों, मिथको को उजाड़ दिया है। जैसे वे बच्चे चुराते हैं (झूठ), नए साथी का जबरन निर्वाण (लिंगोच्छेदन) करते हैं (अशंत:सच), किसी साथी के निधन पर चप्पलों से पीटते हैं (सच) दूसरे इनके किन्नरों के बारे में दर्शकों की धारणा को 2 घंटे (नाटक की अवधि) मैं पूरी तरह बदल देने का गजब का मा माद्रा है।
जानेमन वस्तुत: एक नाटक नहीं पत्थर दिल को भी आंखें मिलने पर मजबूर करने वाली एक धधक है: जानेमन की कथा कुछ यूं है मुंबई की एक उपनगरी बस्ती में किन्नर नज्जो नायक आधा दर्जन चेलनो और दिल्ली से आई सखी पन्ना के साथ रह रहा है । नज़्जो क्रूर पन्ना नरमदिल, पर पन्ना को अपनी चेलन ना होने का मलाल है। संजोग से एक शिक्षित युवक मुकेश किन्नर बनने की तमन्ना लिए बस्ती में पहुंचता है पन्ना के लिए नज़्जों के तोहफे सरीखा। उसके निर्वाण के बाद एक सेठ के साथ धूमधाम से उसकी शादी होती है, पर एक रात के बाद सेठ दोबारा नहीं आता। पन्ना की इस चेलन को नज्जो दूसरी चेलनो की तरह दूकान और सिग्नल पर मांगने (लाल बत्तियों पर) जाने को कहती है, पर सारी कोशिशें बेकार। उस पर कहर टूटता देख पन्ना दम तोड़ देती है। नज्जो में गहरा अपराध बोध जगता है, बस्ती छोड़ रहे मुकेश उर्फ नगीना के लिए उसके शब्द होते हैं, " जा बेटी जा, इस नर्क में किसी को आने से रोक सकती है तो रोक, मत बनने दे कोई अखाड़ा, " नतीजा चेलनो मैं बगावत, और नज्जो के दर्दनाक एकालाप के साथ नाटक का समाप्त होता है।
नाटक में कलाकारों ने भावपूर्ण मंचन से किन्नरों की पीड़ा को प्रदर्शित किया गया, जिसको काफी सराहा गया। मुख्य किरदारों में रणधीर कुमार टिंकू, राजवर्धन, मनीष महिवाल, सत्यजीत केसरी, आदर्श रंजन, अभिषेक आनंद , रोहित चंद्रा आदि रहें। इस नाटक में संगीत परिकल्पना एवं निर्देशन सुरेश कुमार हज्जु ने किया। इस नाटक में कई जगहों पर इमोशनल सीन था, जिसे दर्शकों ने खूब तालियों के साथ एंजॉय किया।