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प्रेमचंद रंगशाला पटना में नाटक बन्द गली का आखिरी मकान नामक नाटक का हुआ मंचन।



पटना। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल का रंग षष्ठी नाट्य समारोह के दूसरे दिन रंगमंडल प्रमुख श्री राजेश सिंह ने दर्शकों एवं अतिथियों का अभिनंदन किया।उन्होंने बताया यह बिहार यात्रा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल की 60वीं वर्षगांठ (हीरक जयंती) समारोह का हिस्सा है। यह समारोह अगस्त 2024 से शुरू होकर 2026 तक चलेगा। इस दौरान मंडली भारत के विभिन्न शहरों और देशों में कर चुकी है इसी कड़ी में प्रस्तुत है आज का नाटक "बंद गली का आखिरी मकान", कहानी है धर्मवीर भारती की और निर्देशित किया है देवेंद्र राज अंकुर जी ने। 




कथासार

क्या है यह 'बन्द गली का आख़िरी मकान'?
यह भी बहुत दिलचस्प ढंग है। वर्षों तक साहित्य में कहानी, नयी कहानी, साठोत्तरी कहानी, अकहानी, आदि को लेकर बहस चलती रहे। लिखने वाला चुप रहे। वर्षों तक चुप रहे और फिर चुपके से एक कहानी लिखकर प्रकाशित करा दे, और वही उसका घोषणा- पत्र हो, गोया उसने सारे वाद-विवाद के बीच एक रचनात्मक कीर्तिमान स्थापित कर दिया हो, कि देखो यह है कहानी।'



बन्द गली का आखिरी मकान प्रकाशित होने पर जो तमाम पत्र लेखक को मिले यह उन्हीं में से एक पत्र का अंश है। क्या है यह बन्द गली का आखिरी मकान? जो एक लम्बी चुप्पी के बाद अपने प्रकाशन के साथ ही सबके मुँह बंद करा देती है। ... कहानी! हां, कहानी ही... यह कहानी डा० धर्मवीर भारती की सभी कहानियों में सबसे अधिक लम्बी है। कहानी की इकाई की अपेक्षा वस्तुतः यह एक उपन्यासिका है, जिसका कथानक बीस कथाखण्डों में विभाजित है। प्रारम्भ प्रमुख पात्र मुंशी जी की लम्बी बीमारी के एक दिन से होता है, और धीरे-धीरे मुंशी जी के माध्यम से ही विविध पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों का नये-नये अर्थों में रहस्योद्घाटन होता है। एक तरफ मुंशी जी हैं, दूसरी तरफ पंद्रह वर्ष पहले पति का घर छोड़ कर अविवाहित मुंशी जी के आसरे में आई बिरजा है। 





मुंशी जी कायस्थ है, तो बिरजा ब्राह्मण। बिरजा की माँ हरदेई है जो मुंशी जी में भगवान के दर्शन करती है। बिरजा का बड़ा बेटा राघोराम साक्षात गऊ है, उसके व्यक्तित्व में पितृभक्ति भरी है। वहीं दूसरा बेटा हरिराम जनम का चोर है जो अपने आचार व्यवहार से सभी के लिए परेशानी खड़ी करता रहता है। इनके अलावा मुंशी जी से संबंधित और भी कई पात्र हैं उनके जीवन से जुड़े हुए, उनके दुःख-सुख-संवेदनाओं के भागीदार, जो अतीत संबंधी स्मृति प्रसंगों में बार-बार आते रहते हैं। परिस्थितियाँ बनती बिगड़ती रहती हैं फिर स्वयं ही अपने लिए एक निश्चित नियामक का निर्धारण कर लेती हैं। जीवन चक्र जहाँ से आरम्भ होता है वही उसका अन्त हो जाता है।




कहानी का घटना स्थल वह कच्चा मकान है जो गली के अन्त में हैं जहां आकर गली बंद हो जाती है। इस मकान के समान हो मुंशी जी की स्थिति है। कथा का अन्त आते आते मुंशी जी की नियति भी बन्द गली के आखिरी मकान की तरह हो जाती है। बन्द और सीमित !




राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल का रंग षष्ठी नाट्य समारोह के दूसरे दिन रंगमंडल प्रमुख श्री राजेश सिंह ने दर्शकों एवं अतिथियों का अभिनंदन किया।उन्होंने बताया यह बिहार यात्रा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल की 60वीं वर्षगांठ (हीरक जयंती) समारोह का हिस्सा है। यह समारोह अगस्त 2024 से शुरू होकर 2026 तक चलेगा। इस दौरान मंडली भारत के विभिन्न शहरों और देशों में कर चुकी है इसी कड़ी में प्रस्तुत है आज का नाटक "बंद गली का आखिरी मकान", कहानी है धर्मवीर भारती की और निर्देशित किया है देवेंद्र राज अंकुर जी ने। 

कथासार
क्या है यह 'बन्द गली का आख़िरी मकान'?
यह भी बहुत दिलचस्प ढंग है। वर्षों तक साहित्य में कहानी, नयी कहानी, साठोत्तरी कहानी, अकहानी, आदि को लेकर बहस चलती रहे। लिखने वाला चुप रहे। वर्षों तक चुप रहे और फिर चुपके से एक कहानी लिखकर प्रकाशित करा दे, और वही उसका घोषणा- पत्र हो, गोया उसने सारे वाद-विवाद के बीच एक रचनात्मक कीर्तिमान स्थापित कर दिया हो, कि देखो यह है कहानी।'






बन्द गली का आखिरी मकान प्रकाशित होने पर जो तमाम पत्र लेखक को मिले यह उन्हीं में से एक पत्र का अंश है। क्या है यह बन्द गली का आखिरी मकान? जो एक लम्बी चुप्पी के बाद अपने प्रकाशन  के साथ ही सबके मुँह बंद करा देती है। ... कहानी! हां, कहानी ही... यह कहानी डा० धर्मवीर भारती की सभी कहानियों में सबसे अधिक लम्बी है। कहानी की इकाई की अपेक्षा वस्तुतः यह एक उपन्यासिका है, जिसका कथानक बीस कथाखण्डों में विभाजित है। प्रारम्भ प्रमुख पात्र मुंशी जी की लम्बी बीमारी के एक दिन से होता है, और धीरे-धीरे मुंशी जी के माध्यम से ही विविध पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों का नये-नये अर्थों में रहस्योद्घाटन होता है। एक तरफ मुंशी जी हैं, दूसरी तरफ पंद्रह वर्ष पहले पति का घर छोड़ कर अविवाहित मुंशी जी के आसरे में आई बिरजा है। मुंशी जी कायस्थ है, तो बिरजा ब्राह्मण। बिरजा की माँ हरदेई है जो मुंशी जी में भगवान के दर्शन करती है। बिरजा का बड़ा बेटा राघोराम साक्षात गऊ है, उसके व्यक्तित्व में पितृभक्ति भरी है। वहीं दूसरा बेटा हरिराम जनम का चोर है जो अपने आचार व्यवहार से सभी के लिए परेशानी खड़ी करता रहता है। इनके अलावा मुंशी जी से संबंधित और भी कई पात्र हैं उनके जीवन से जुड़े हुए, उनके दुःख-सुख-संवेदनाओं के भागीदार, जो अतीत संबंधी स्मृति प्रसंगों में बार-बार आते रहते हैं। परिस्थितियाँ बनती बिगड़ती रहती हैं फिर स्वयं ही अपने लिए एक निश्चित नियामक का निर्धारण कर लेती हैं। जीवन चक्र जहाँ से आरम्भ होता है वही उसका अन्त हो जाता है।

कहानी का घटना स्थल वह कच्चा मकान है जो गली के अन्त में हैं जहां आकर गली बंद हो जाती है। इस मकान के समान हो मुंशी जी की स्थिति है। कथा का अन्त आते आते मुंशी जी की नियति भी बन्द गली के आखिरी मकान की तरह हो जाती है। बन्द और सीमित !

पात्र परिचय

मुंशीजी : आलोक रंजन / राजेश सिंह
बिरजा : शिल्पा भारती
हरदेई : पूजा गुप्ता
हरिराम : सत्येन्द्र मल्लिक
राघो राम : अनंत शर्मा
भवनाथ : शिव प्रसाद गोंड
छोटी बहू : मधुरिमा तरफदार
बिटौनी / मेहरुनिसा : शिवानी भारतीय
वकील / महाराज / वैद्य : हीरालाल रॉय
इसाक मियां/बिशन मामा : सुमन कुमार
मीडिया प्रभारी : मनीष महिवाल
रंगमंडल प्रमुख : राजेश सिंह 
कहानी : धर्मवीर भारती 
निदेशक : देवेंद्र राज अंकुरआलोक रंजन / राजेश सिंह
बिरजा : शिल्पा भारती
हरदेई : पूजा गुप्ता
हरिराम : सत्येन्द्र मल्लिक
राघो राम : अनंत शर्मा
भवनाथ : शिव प्रसाद गोंड
छोटी बहू : मधुरिमा तरफदार
बिटौनी / मेहरुनिसा : शिवानी भारतीय
वकील / महाराज / वैद्य : हीरालाल रॉय
इसाक मियां/बिशन मामा : सुमन कुमार
मीडिया प्रभारी : मनीष महिवाल
रंगमंडल प्रमुख : राजेश सिंह 
कहानी :  धर्मवीर भारती 
निदेशक : देवेंद्र राज अंकुर

 

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