Header Ads Widget

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल का रंग षष्ठी नाट्य समारोह के तीसरे दिन 18 सितंबर 2025 को प्रेमचंद रंगशाला पटना में महाश्वेता देवी की कहानी बायेन का हुआ मंचन

 



पटना। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल का रंग षष्ठी नाट्य समारोह के तीसरे दिन 18 सितंबर 2025 को प्रेमचंद रंगशाला पटना में महाश्वेता देवी की कहानी 'बायेन' का मंचन हुआ जिसका निर्देशन उषा गांगुली जी ने किया।




रंगमंडल प्रमुख श्री राजेश सिंह ने दर्शकों का आभार व्यक्त करते हुए अफसोस भी जताया कि हॉल भरा होने के कारण हमारे कुछ दर्शन को खड़े एवं जमीन पर बैठकर नाटक देखना पड़ रहा है, आगे से हम इसका ख्याल रखेंगे।




कथासार

महाश्वेता देवी की कहानी 'बायेन' पर आधारित यह नाटक उनके लेखन के मूल भाव, अर्थात् मानवीय जीवन के विभिन्न रंग और सामाजिक-आर्थिक विषमताओं से हमारा परिचय करवाता है। समाज के निचले स्तर पर रहने वाले लोग, श्मशानों के अंधकार में रहने वाले डोम, गंगा नदी के तट पर रहने वाले बागड़ी, दुसाध और माँझी समुदाय, घने जंगलों में रहने वाले संथाल, ये सब मूल मानवीय अधिकारों से वंचित है। उनकी रचनाओं के पात्र निरक्षरता, अंधविश्वास, गरीबी आदि से जूझ रहे होते है- वी अधकार में प्रवेश करते नजर आते है उसमें फँसते हुए लेकिन फिर वो उससे मुक्त होते भी दिखते हैं।




बायेन की चण्डी दासी काफी छोटी उम्र में ही मरे हुए जानवरों को दफनाने के काम में झोक दी जाती है। अपने पूर्वजों के काम को करने की उसकी जिम्मेदारी का हवाला देकर उसे बेहद कष्टप्रद जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। कालान्तर में वो मलिन्दर से विवाह करने का निर्णय लेती है, जो सरकारी श्मशान में काम करता है। और चण्डी दासी की जिम्मेदारी लेने को तैयार हो जाता है। लेकिन बाद में यही मलिन्दर उसे एक बायेन घोषित कर देता है और चण्डी दासी एक सामान्य जीवन जीने के अधिकार से भी वंचित हो जाती है। धीरे-धीरे दो स्वयं यह मान लेती है कि ऐसा अमानवीय जीवन जीना ही उसकी नियति है।




नाटक लगातार यह दिखाने का प्रयास करता है कि चण्डी, जिसे अंधविश्वास के नाम पर दर्दनाक कीमत चुकानी पड़ती है, न सिर्फ मातृत्व से हाथ धो बैठती है, बल्कि अपनी चेतना का बीज भी खो बैठती हैं। जबकि यही दर्द और यही बीज हजारों महिलाओं को सशक्त करते हैं और चण्डी की तरह जननी बनने का अवसर प्रदान कराते हैं, उन्हें उनकी वीरता के शिखर पर पहुंचाते हैं। अंततः उसका पुत्र युवा पीढ़ी में बदलाव के प्रतिनिधि के रूप में उभरकर आता है और आत्म सम्मान तथा गरिमा की लौ जलाने में सफल होता है।




नाटक के मुख्य भूमिका

शिल्पा भारती, सुमन, सत्येंद्र, पूजा, पूनम, शिव प्रसाद, प्रतीक आदि।

रंगमंडल प्रमुख : राजेश सिंह

लेखिका : महाश्वेता देवी

निर्देशिका : उषा कवाली


 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ