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समाजसेवी कमलनयन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित है डॉ आरती की पुस्तक एक और दधीचि - कमलनयन श्रीवास्तव



  • समाजसेवी कमलनयन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित है डॉ आरती की पुस्तक एक और दधीचि - कमलनयन श्रीवास्तव
  • कृति - 'एक और दधीचि-कमलनयन श्रीवास्तव’ 
  • संपादक - डॉ० आरती कुमारी 
  • प्रकाशक : अभिधा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 
  • मूल्य : 500 रूपये
  • पुस्तक समीक्षा :विद्यानन्द ब्रहमचारी 

पटना। डॉ. आरती कुमारी सम्पादित 'एक और दधीचि- कमलनयन श्रीवास्तव' नामक पुस्तक आद्योपांत पढ़ गया। इसमें सन्निहित सामग्री न केवल श्रेष्ठ सम्पादन कला का उत्कृष्ट नमूना है बल्कि सभी रचनायें स्तरीय और प्रेरणादयक है। हमारे पुराणों में ऐसे कई दृष्टान्त मिलते हैं कि जिनसे परोपकारी पराकाष्ठा पाई जाती है। पुराणों के पढ़ने से जाना जाता है कि परोपकार के लिये महर्षि दधीचि ने हंसते हंसते अपना जीवन समर्पित कर दिया था। 

इसी -प्रसंग में पटना (बिहार) के निवासी, चित्रगुप्त सामाजिक संस्थान के प्रधान सचिव और 'कलमजीवी वार्षिक स्मारिका के सम्पादक श्री कमलनयन श्रीवास्तव जी का जीवन महर्षि दधीचि के सदृश्य परहित के लिये है।श्रीवास्तव जी का जीवन एक गहरा सागर है और साहित्य इस गहरे सागर का अवलोकन करता है। साहित्य एक अभिव्यक्तिक है और जीवन के अनुभव ही इस अभिव्यक्ति का स्रोत है। साहित्य की मदद से साहित्यकारों ने कई सारी सामाजिक बुराइयों और कुप्रथाओं का भी खण्डन किया। 



अत: जीवन साहित्य का आधार है और हमेशा रहेगा।जो अपने कामों में सफल होता है, उसकी सभी सराहना करते हैं। उसका जीवन और चरित्र ऊँचा उठ जाता है। उसका जीवन आनन्दमय हो जाता है।छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद जी ने ठीक कहा है- समर्पण है सेना का सार। सभी जानते हैं कि सुर-समाज की सुरक्षा दधीचि के अस्थिदान से हुई थी।श्रीवास्तव जी का गौरव गान कायस्थ जाति के कारण हुआ है। श्रीवास्तव जी के हृदय रुपी पुष्प में लोकमंगल की पवित्र भावना हिलोरें ले रही हैं।यह संसार समर भूमि है, जिस दिन मनुष्य यहाँ जन्म लेता है, उस दिन से मरण काल पर्यन्त उसे संग्राम करना पड़ता है। ईश्वर ने प्रत्येक आदमी को जुदा-जुदा काम के लिए भेजा है।साहित्य सेवी श्रीवास्तव जी के हृदय में हढ़ता और संकल्प है, उसे कोई भी नहीं रोक सकता। हर तरह की कठिनाइ‌यों को झेल कर कर्तव्य पथ पर आरूढ़ हैं।

इन पंक्तियों का लेखक डॉ. विद्यानन्द ब्रह्मचारी 61 वर्षो से अनेक महापुरुषों- साधु-सन्नो के जीवन चरित्र का का गगन कर अनुभव किया कि अपने काम के प्रति सजग रहो। इसी कोटि में हमारे हृदय स्नेही, साहित्य सेवी, सामाजिक सेवी का जीवन सुमन सुर्यभ की भांति महक रहा है।मानवता का इतिहास बतलाता है कि दुनिया जिसने अपने कर्मों से नयी प्रेरणा दी वही व्यक्ति का व्यक्तित्व हमारे अन्तर का गौरव-गान है। ऐसे ही व्यक्तित्व वाले से समाज का रूप रंग बदलता है। अत: उनका कल्याण कारी स्वभाव, सादगी पूर्ण जीवन आकर्षण का केन्द्र है,सन्त-महात्माओं का उपदेश है कि परोपकार ही जीवन है। परोपकार मानव का नैसर्गिक गुण है। परोपकार पवित्र कर्म है।अत: श्री कमलनयन -श्रीवास्तव जी सब के हितैषी चाहने वाले मानव है। इनका जीवन धन्य है और मंगलमय है।