Criminal laws : आइये जानते हैं कि तीन नए कानून क्या हैं? जिन तीन कानूनों को बदलना है उनमें अभी क्या है? इनमें खामियां क्या हैं? नए कानूनों से क्या बदलेगा? नए कानूनों में क्या प्रावधान किए गए हैं? 1 जुलाई से देशभर में तीन नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम लागू हो जाएंगे। 25 दिसंबर, 2023 को राष्ट्रपति ने तीन विधेयकों को अपनी मंजूरी दी थी। 12 दिसंबर, 2023 को इन तीन कानूनों में बदलाव का बिल लोकसभा में प्रस्तावित किया गया था। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम 1 जुलाई से प्रभावी हो जाएंगे। इस दिन से दशकों पुराने भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनयम बदल जाएंगे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बताया था कि राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, भारत की सुप्रीम कोर्ट, 22 हाईकोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सांसद और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं। चार साल तक इस पर काफी चर्चा हुई है। सरकार ने इस पर 158 बैठकें की हैं। आजादी के पहले बने ये कानून अब तक चल रहे थे।
किन-किन कानूनों में बदलाव होगा ?
भारतीय दंड संहिता: भारतीय दंड संहिता 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 जगह लेगी। यह आईपीसी के 22 प्रावधानों को निरस्त करेगी। इसके साथ ही नई संहिता में आईपीसी के 175 मौजूदा प्रावधानों में बदलाव का प्रस्ताव किया गया है और नौ नई धाराएं पेश की गईं हैं। भारतीय न्याय संहिता, 2023 में कुल 356 धाराएं हैं।
अपने भाषण के दौरान गृह मंत्री ने बताया था कि यह नया कानून राजद्रोह के अपराध को पूरी तरह से निरस्त करता है। हालांकि, इसमें राज्य के विरुद्ध अपराध का प्रावधान है। इसकी धारा 150 भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों से सबंधित है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि नए कानून में मॉब लिंचिंग के अपराध को दंडित करने का प्रावधान करता है और इसके लिए सात साल या आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता:
दूसरा जो कानून बदलने जा रहा है वो आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (सीआरपीसी) है। सीआरपीसी की जगह ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023’ को प्रस्थापित किया जाएगा। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के जरिए सीआरपीसी के नौ प्रावधानों को निरस्त किया जाएगा। इसके अलावा इस कानून में सीआरपीसी के 107 प्रावधानों में बदलाव और नौ नए प्रावधान पेश करने को कहा गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में कुल 533 धाराएं हैं।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम: बदलने वाला तीसरा कानून भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 है। इसकी जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 लागू किया जाएगा। नया अधिनियम मौजूदा साक्ष्य अधिनियम के पांच मौजूदा प्रावधानों को निरस्त करेगा। बिल में 23 प्रावधानों में बदलाव का प्रस्ताव है और एक नया प्रावधान पेश किया गया है। इसमें कुल 170 धाराएं हैं।
तीनों नए कानूनों से क्या बदलेगा ?
भारत की संप्रभुता या अखंडता को खतरे में डालने वाले किसी भी व्यक्ति को अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। वहीं, मॉब लिंचिंग और नाबालिग से दुष्कर्म में शामिल लोगों को अधिकतम मौत की सजा दी जा सकती है। हत्या के जुर्म के लिए सजा-ए-मौत या आजीवन कारावास की सजा होगी। दुष्कर्म में शामिल लोगों को कम से कम 10 साल की जेल या आजीवन कारावास की सजा होगी और सामूहिक दुष्कर्म के लिए कम से कम 20 साल की कैद या उस व्यक्ति के शेष जीवन के लिए कारावास की सजा होगी।
बिल के अनुसार, यदि किसी महिला की बलात्कार के बाद मृत्यु हो जाती है या इसके कारण महिला लगातार बेहोश रहती है, तो दोषी को कठोर कारावास की सजा दी जाएगी, जिसकी अवधि 20 वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास के लिए बढ़ाया जा सकता है
बिल के अन्य खास प्रावधान :
- नागरिक किसी भी पुलिस स्टेशन में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकेंगे, चाहे उनका अधिकार क्षेत्र कुछ भी हो।
- जीरो एफआईआर को क्षेत्राधिकार वाले पुलिस स्टेशन को अपराध पंजीकरण के बाद 15 दिनों के भीतर भेजा जाना अनिवार्य होगा।
- जिरह अपील सहित पूरी सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से की जाएगी।
- यौन अपराधों के पीड़ितों के बयान दर्ज करते समय वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी।
- सभी प्रकार के सामूहिक बलात्कार के लिए सजा 20 साल या आजीवन कारावास।
- नाबालिग से बलात्कार की सजा में मौत की सजा शामिल है।
- एफआईआर के 90 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से चार्जशीट दाखिल की जाएगी। न्यायालय ऐसे समय को 90 दिनों के लिए और बढ़ा सकता है, जिससे जांच को समाप्त करने की कुल अधिकतम अवधि 180 दिन हो जाएगी।
- आरोप पत्र प्राप्त होने के 60 दिन के भीतर अदालतों को आरोप तय करने का काम पूरा करना होगा।
- सुनवाई के समापन के बाद 30 दिन के भीतर अनिवार्य रूप से फैसला सुनाया जाएगा।
- फैसला सुनाए जाने के सात दिन के भीतर अनिवार्य रूप से ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाएगा।
- तलाशी और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी।
- सात साल से अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक टीमों को अनिवार्य रूप से अपराध स्थलों का दौरा करना होगा।
- जिला स्तर पर मोबाइल एफएसएल की तैनाती होगी।
- सात साल या उससे अधिक की सजा वाला कोई भी मामला पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना वापस नहीं लिया जाएगा।
- संगठित अपराधों के लिए अलग, कठोर सजा।
- शादी, नौकरी आदि के झूठे बहाने के तहत महिला के बलात्कार को दंडित करने वाले अलग प्रावधान।
- चेन / मोबाइल स्नैचिंग और इसी तरह की शरारती गतिविधियों के लिए अलग प्रावधान।
- बच्चों के खिलाफ अपराध के लिए सजा को सात साल से बढ़ाकर 10 साल की जेल की अवधि तक।
- मृत्युदंड की सजा को कम करके अधिकतम आजीवन कारावास में बदला जा सकता है, आजीवन कारावास की सजा को कम करके अधिकतम सात साल के कारावास में बदला जा सकता है और सात साल की सजा को तीन साल के कारावास में बदला जा सकता है और इससे कम नहीं।
- किसी भी अपराध में शामिल होने के लिए जब्त किए गए वाहनों की वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी

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