कथासार
सफ़ेद खून शेक्सपियर के नाटक किंग लियर का अनुवाद है, जिसमे आगा हश्र कश्मीरी ने कुछ सकारात्मक परिवर्तन किये हैं। इस नाटक का निर्देशन सुरेश कुमार हज्जू ने किया है, जो कई वर्षों से कश्मीरी साहब के पारसी नाटकों की प्रस्तुति अपनी संस्था एच एम टी द्वारा करते आ रहे है।
कथाक्रम में खाकान एक राजा है, जो स्वभाव से क्रोधी एवं विवेकरहित है। वृद्धावस्था के कारण अपना राज्य अपनी पुत्रियों को देकर वह चिंतामुक्त जीवन व्यतीत करना चाहता था। अतएव उसने अपनी तीनों पुत्रियों- दिल आरा, माह पारा और ज़ारा को बुलाया और उनसे पूछा कि वे उसे कितना प्यार करती हैं। दिल आरा और माह पारा ने पिता के प्रति अपना असीम स्नेह खूब बढ़ा चढ़ाकर प्रकट किया, किंतु ज़ारा ने इने-गिने शब्दों में कहा कि वह अपने पिता को उतना ही प्यार करती है जितना उचित है, न कम, न अधिक। इस उत्तर से रुष्ट होकर खाकान ने अपने वज़ीर अरसलान और सअदान के लाख समझाने के बाद भी ज़ारा को तीसरा भाग न देकर अपने राज्य को बाक़ी दोनों बेटियों में बराबर भागों में बाँट दिया। दोनों बेटियों ने खाकान एवं उनके साथियों तथा नौकर- चाकरों को बारी-बारी से अपने साथ रखने का वचन दिया, लेकिन जब खाकान अपनी बेटियों के पास रहने के लिए गया, तो दोनों ने अपने वृद्ध पिता के प्रति अत्यंत कठोर और स्वार्थपूर्ण व्यवहार किया। फलत: खाकान तीव्र मानसिक आवेग की अवस्था में आंधी और वर्षा का प्रकोप झेलते हुए व्यग्र होकर इधर-उधर भटकने लगा और अंत में विक्षिप्त हो गया। इन सभी अवस्थाओं में उसके स्नेही अनुचर उसको निरंतर सांत्वना और सहायता प्रदान करते रहे और उसे छोटी बेटी ज़ारा के पास ले गए। इसकी जानकारी मिलने पर दिल आरा और माहपारा उन दोनों को क़ैद कर लेती है और मार डालने का हुक्म देती है, लेकिन ज़ारा का पति उन दोनों को बचा लेता है।
सअदान का बेटा बैरम स्वभाव से ही नीच एवं कुचक्री है और दिल आरा और माह पारा उससे प्यार करती है और इसी कारण अंत में उन दोनों की मत्यु होती है। खाकान ज़ारा को राज सौप देता है और दुखांत किंग लियर के विपरीत सफ़ेद खून का सुखान्त होता है। नाटक का मूल तत्व ज़ारा का ज्ञान है, कि शक्तिशाली पिताओं को सावधान रहना चाहिए कि वे अपनी संतानों की अधिक सुनें और कम बात करें। क्या ईश्वर ने अपनी बुद्धि से मानवजाति को केवल एक जीभ और दो कान नहीं दिये थे? कई सवाल छोड़ जाता है नाटक सफ़ेद खून, सभी पात्रों ने बखूबी अपने अभिनय से नाटक को जीवंत किया।
खाकान एवं दिलआरा , ज़ारा ने अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया । संगीत परिकल्पना रोहित चंद्रा द्वारा किया गया जो नाटक में अनुकूल प्रभाव दे रहा था। नाटक की सभी कलाकारों ने सराहनीय कार्य किया।
पात्र परिचय
खाकान - गोपी कुमार
माहपारा - काजल राज
शौहर माहपारा/तुर्रम - प्रिंस राज
दिलआरा - कृतिका कुमारी
शौहर दिलआरा- शुभम तेजस्वी
ज़ारा - भूमि कुमारी
शौहर ज़ारा/ ज़लील/ जल्लाद - राजन मंडल
सअदान - राहुल कुमार
अरसलान - करण कुमार
बैरम- विशाल कुमार
परवेज़/ जल्लाद/ सैनिक-आशु शुक्ला
गुलखैरो -नीरज कुमार
गुलदम/ नृत्यांगना - सिमरन कुमारी
बगलोल/ जल्लाद- शशी कुमार
ज़लील/सैनिक-राजन मंडल
लैला/नृत्यांगना-नेहा कुमारी
कड़क/ सैनिक /साजन कुमार
फड़क/ सैनिक- विवेक कुमार
मंच परिकल्पना - सुरेश कुमार हज्जु/सुनील कुमार
वेश - भूषा - जितेन्द्र कुमार जीतू
वस्त्र विन्यास - गोपी कुमार , विशाल कुमार
सेट सहयोग - बिजेन्द्र टांक
फोटोग्राफी - सौरव सागर, सत्य प्रकाश
वीडियोग्राफी- उत्पल कुमार , विक्रम कुमार
प्रचार प्रसार/ फोटोग्राफी - मनीष महिवाल
उदघोषक- समीर चंद्रा/ राजीव रंजन श्रीवास्तव
संगीत परिकल्पना - रोहित चंद्रा
हारमोनियम - चंदन उगना
नाल / ढोलक - स्पर्श मिश्रा
गायन मंडली - रोहित चंद्रा, प्रिंस राज, रेखा सिंह, चंदन उगना
प्रकाश परिकल्पना - राहुल कुमार रवि
सह निर्देशन - राहुल कुमार राज
लेखक - आग़ा हश्र कश्मीरी
परिकल्पना एवँ निर्देशन - सुरेश कुमार हज्जु