राजधानी पटना के प्रेमचंद रंगशाला में नागरदोला नाटक के मंचन के साथ 2 दिवसीय 20 वां रंगकर्मी प्रवीण नाट्य उत्सव संपन्न हो गया। रविन्द्र भारती लिखित व विज्येंद्र टांक निर्देशित इस नाटक में हाशिये पर पड़ी प्रेम के दर्द को बखूबी दर्शाया गया।
नाटक नागरदोला कथा सार :
ठहरो, ठहरो, जरा ठहरो। दुदभी बजने की आवाज़ सुनने दो। लगता है चूहड़ ने दुर्गापुर के दंगल में बाजी मार ली। उसी की जयकार लोग कर रहे हैं।
क्या, विरल संयोग है कि यह चूहड़ भी वैसा ही नामवर मल्ल निकला । अब आप सोचते होंगे कि दूसरा चूहड़ और कौन सा मल्ल हुआ? वही चुहर,रेशमा जिसकी महबूबा थी। वह चूहड़ भी नामवर मल्ल था । आपको लगता होगा कि वह तो युगों पहले मारा गया। किसी ने मार दिया और वह मर गया, किसी ने जला दिया, वह जल गया, किसी ने दहा दिया, वह दह गया, किसी ने मिट्टी में दबा दिया, वह दब गया! नहीं, ऐसा नहीं है ।
प्रेम कभी नहीं मरता। बंदूक, तोप की क्या विसात अटैम बम भी उसे नहीं मार सकता। प्रेम हर काल में जीवित रहा , और ये भी की उससे हर काल में मृत्यु देने की कोशिश की गई । रेशमा और चूहर आज के समाज में भी जीवित है । उसी रेशमा और चूहरमल की कहानी को अपनी दृष्टि से दिखने की कोशिश है!
कलाकारों ने अपनी बेहतरीन अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। नाटक के पात्रों में
रेशमा - अपराजिता मिश्रा
चूहडमल - मो. जफर आलम
सूत्रधार 1/अघोड़ी सिपाही1-रोहित चंद्रा,
सूत्रधार 2/अघोड़ी2/गोड़इत- सेंटी कुमार, मरकहे पंडित - कुमार स्पर्श मिश्रा, कुट्टा बवाली - कुणाल कुमार , बसंता - विनोद कुमार, गूंगा -राहुल रंजन , लुत्ती - श्रीपर्णा चक्रवर्ती, लाहो - नीलम कुमारी , बड़ी मां - रूबी खातून थी। वहीं प्रकाश - राहुल रवि, रूप सज्जा= जितेंद्र जीतू, मंच - सुनील कुमार, संगीत - संजय उपाध्याय, हरमोनियम - रोहित चंद्रा, ढोलक गौरव पांडेय, सारंगी - अनीस मिश्रा, कंसी- राकेश कुमार , अभिकल्पक अभिषेक राज , लेखक - रविन्द्र भारती, परिकल्पना एवं निर्देशन - बिज्येंद्र कुमार टांक ने किया ! साथ ही प्रवीण स्मृति सम्मान की घोषणा भी की गई!