- नवजात शिशु देखभाल व रोग प्रबंधन के लिये एसएनसीयू के सफल संचालन करायें सुनिश्चित
- हर दिन जन्म लेने वाले करीब 20 फीसदी बच्चे होते हैं किसी न किसी रोग के शिकार
- सिविल सर्जन व डीपीएम ने की एसएनसीयू के कार्यों की समीक्षा, दिया जरूरी निर्देश
अररिया, 28 जुलाई ।
SON OF SIMANCHAL GYAN MISHRA
नवजात की मौत से संबंधित अधिकांश मामले प्रसव के 24 घंटों के अंदर घटित होते हैं. समय पूर्व प्रसव, नवजात का संक्रमित होना, प्रसव के दौरान दम घुटना, जन्मजात विकृतियां इसके प्रमुख वजहों में शामिल है. समुचित पोषण का अभाव, कम उम्र में शादी, एएनसी जांच की अनदेखी सहित अन्य वजहों से नवजात किसी जन्मजात विकार के शिकार हो सकते हैं. ऐसे बीमार नवजात को तत्काल सुविधाजनक इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने में एसएनसीयू यानी स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट की भूमिका महत्वपूर्ण है. जिले में नवजात मृत्यु के मामलों में कमी लाने के उद्देश्य से एसएनसीयू के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर दिया जा रहा है. इसी क्रम में शुक्रवार को सिविल सर्जन विधानचंद्र सिंह व डीपीएम संतोष कुमार ने सदर अस्पताल परिसर में संचालित एसएनसीयू का निरीक्षण करते हुए संबंधित कार्यों की गहन समीक्षा की.
हर दिन जन्म लेने वाले 20 फीसदी बच्चे होते हैं रोगग्रस्त-
सिविल सर्जन ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक हर दिन पैदा होने वाले करीब 20 फीसदी बच्चे किसी न किसी रोग के शिकार होते हैं. तत्काल उचित चिकित्सकीय सुविधा के अभाव में उन्हें जान का खतरा होता है. उन्होंने कहा कि नवजात में रोग का पता लगाना मुश्किल होता है.
जन्म के उपरांत बच्चों के वजन, आकार, आव-भाव, हरकत व लक्षणों के आधार पर रोगग्रस्त नवजात की पहचान की जाती है. जन्म के उपरांत बच्चों का नहीं रोना, शरीर व हाथ पांव का रंग पीला होना, हाथ-पांव ठंडा होना मां का दूध नहीं पीना, अधिक रोना, चमकी कटे तालू व होंठ सहित अन्य लक्षणों के आधार पर रोगग्रस्त नवजात की पहचान किये जाने की जानकारी उन्होंने दी. उन्होंने कहा कि एसएनसीयू सेवाओं के प्रति आम लोगों को जागरूक होने की जरूरत है. ताकि इसका समुचित लाभ उठाया जा सके.
एसएनसीयू की सेवा लोगों के लिये नि:शुल्क -
डीपीएम स्वास्थ्य संतोष कुमार ने बताया कि निरीक्षण के क्रम में एसएनसीयू में सात नवजात इलाजरत मिले. डॉ विमल कुमार व स्टॉफ नर्स मनी कुमार, वर्षा रानी ड्यूटी पर तैनात मिली. उन्होंने बताया कि रोग पहचान में आने के तत्काल बाद उन्हें एसएनसीयू में इलाज के लिये भर्ती कराया जाता है. आम लोगों के लिये इसकी सेवांए मुफ्त हैं. जबकि निजी क्लिनिकों में इसी सेवा के लिये लोगों को बड़ी रकम चुकानी पड़ती है.
अप्रैल से जून के बीच कुल 227 नवजात का हुआ सफल इलाज-
जिला मूल्यांकन व अनुश्रवण पदाधिकारी पंकज कुमार ने बताया कि एसएनसीयू में सदर अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चे यानी इन बॉर्न व आउट बॉर्न किसी सरकारी व निजी संस्थान में जन्म लेने बच्चे इलाज के लिये भर्ती कराये जा सकते हैं. बीते अप्रैल माह में इनबॉर्न 41 व आउट बॉर्न 32 नवजात, मई में 51 इनबॉर्न व 18 आउटबॉर्न व जून महीने में 39 इनबॉर्न व 46 आउटबॉर्न बच्चे एसएनसीयू में इलाज के लिये दाखिल कराये गये हैं.
विशेष चिकित्सकीय देखरेख में रखे जाते हैं बीमार बच्चे -
एसएनसीयू के प्रभारी चिकित्सक डॉ विमल ने बताया कि बीमार नवजात का 24 से 48 घंटों तक विशेष चिकित्सकीय देखरेख में रहने की जरूरत होती है. इस दौरान नवजात की सेहत पर विशेष निगरानी रखी जाती है.
एसएनसीयू आधुनिक सुविधाओं से लैस है. इसमें रेडियो वॉर्मर, ऑक्सीजन की सुविधा, जॉनडिश पीडित बच्चों के लिये महत्वपूर्ण फोटो थैरेपी सहित नवजात के लिये डाइपर, सक्शन मशीन जैसी सुविधा उपलब्ध है.