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मगही वेव सिरीज़ बंसतपुर डायरी एक बेहतरीन वेव सिरीज़




मगही और मगहिया समाज। मेरी नज़र में भाषा और संस्कृति के मामले में अति पिछड़ा रहा है। उपेझित रही है यहां की साहित्य-कला। देखा जाये तो बिहार-झारखण्ड मिला कर इन दो राज्यो में सबसे ज्यादा जो बोली ,बोली जाती है वह मगही है। जबकि मगध का इतिहास तो गौरवशाली है। सम्राट अशोक, चाणक्य,बुद्ध ,महावीर से लेकर दशरथ मांझी तक को दुनिया जानती है।मगर हम मगही में साहित्यिक और सांस्कृतिक स्तर पर वह काम नहीं कर पाये,जो अन्य भाषाओं में हुआ है।वैसे तो हिन्दुस्तान मे़ हिंदी ही को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला है‌। मेरी जानकारी में विश्व मे भारत ही ऐसा देश है, जहां किसी भाषाई दिवस मनाया जाता है‌।

खैर हम बात कर रहे थे मगही की। मगही में कविता, कहानी, नाटक भी लिखे गये हैं। कवि सम्मेलन और नाटक भी खेले जाते है।मगही में फिल्म भी बनाई गई। मगर फिल्मों को वह व्यवसायिक सफलता नहीं मिल पाई, जिसके वह हकदार थे्।भईया,मोरे मन मितवा,देवन मिसिर, विधना नाच नचावे,घर अंगना जैसी फिल्में बनी बनी, प्रदर्शित भी हुई। नाम ,यश मिला मगर दाम के लिए निर्माता मोहताज हो गये। मगही नाटक "देवन मिसिर और "दशरथ " मांझी" का जब भी प्रदर्शन किया तो आपार सफलता मिली। प्रत्येक शौ में हजारो की भीड़ मिली। मगर मगही फिल्मो को क्यो ग्रहण लग जाता है। इसका कारण तलाशना होगा। एक कारण तो है नाटक फ्री में देखा जाता है,और फिल्म देखने के लिए पैसे खर्च होते हैं। दुसरा कारण हो सकता है मगही फिल्मों का निरंतर निमार्ण नहीं होना। सुनते हैं अग्रेजो ने पहले फ्री में चाय पिलाकर लोगो को चाय पीने की आदत लगाई।आज हम चाय के बैगर रह नहीं सकते है। तो मगही में भी निरंतर फिल्म-सिरियल बने तो मगही सिनेमा का उत्थान हो सकता है। मगही कलाकारों को रोजगार मिल सकता है। इस कड़ी में बड़ा और नेक काम कर रहे है मागधी ब्याज फेम विश्वजीत और युगल की युगल जोड़ी।

"बंसतपुर डायरी" एक मगही वेव सिरीज़ है। इसका एक एपिसोड मैने भी देखा है। कम संसाधनों में बनाई गई एक बेहतरीन वेव सिरीज़ है।सारे बिहारी कलाकारों-तकनिशयनो ,बिहारी लोकेशन और मगही की मिठास लिए है। हिन्दी फिल्म वाले मगहिया बोली को अपने फ़िल्मों में रख कर उसे हीट करा देते है। खुदगर्ज, अपहरण, दामुल, कालका, मृत्युदंड इसके उदहारण है।" बंसतपुर डायरी" तो शुद्ध मगही की महक लिए हुये है।इसे भी आप वही प्यार और सम्मान दें जो और फिल्मों के लिए देते है। हिंसा, सेक्स, गंदी राजनीति परोसने वाली फिल्मों -सिरिजो से तो लाख बेहतर है "बंसतपुर डायरी। मैथली फिल्म " सस्ता जिंनगी महक सिन्दुर" भाषाई प्रेम और गुणवत्ता के कारण कड़ोड़ो का व्यवसाय कर सकता है तो मगही फिल्म क्यो नही। "! त देखहुं और देखाहूं " बंसतपुर डायरी " आऊ मगही सिनमा के व्यवसायिक सफलता दिरावे में योगदान देहूं।जय मगही।जय मगध।जय जय हो "बंसतपुर डायरी "