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फारबिसगंज में गुरुनानक देव की 553 वीं प्रकाश पर्व के जयंती पर भारत - नेपाल के श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया । लंगर भी आयोजित



अररिया/फारबिसगंज-SON OF SIMANCHAL GYAN MISHRA 

वाहे गुरुजी की खालसा ,वाहे गुरुजी की फतेह जैसे ओजस्वी नारों से गुंजायमान रहा फारबिसगंज का गुरुद्वारा साहेब सिंहसभा का पूरा दरबार । मौका था शुक्रवार को स्थानीय राममनोहर लोहिया पथ वा गुरुद्वारा सिंहसभा में सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानकदेव जी महाराज के 553 वीं प्रकाश उत्सव मनाए जाने का ।

             कार्यक्रम में गुरुद्वारा के मुख्यग्रंथी ज्ञानी प्रदीप सिंह वेदी के अगुवाई में तीनदिवसीय श्रीगुरु ग्रंथ साहेब जी का अखण्ड पाठ किया गया । जिसका समापन शुक्रवार को शब्द कीर्त्तन अरदस के साथ किया गया । मौके पर गुरुनानक देव जी महाराज के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए ग्रंथी ज्ञानी सरदार श्री वेदी ने बताया श्री गुरुनानक देवजी महराज का प्रकाश (जन्म) 1469 ई० को कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर तत्कालीन पंजाब प्रांत के ननकाना साहब में हुआ था । उनके पिता का नाम मेहता कालू दास जी था और माता का नाम तृप्ता कौर था इनके दो पुत्र थे, श्रीचंद जी और लक्षमी दास जी थे । 



तत्कालीन समाज में व्याप्त जातीय व्यवस्था और समाजिक भेदभाव , धार्मिक आडम्बर ,अंधविश्वास के खिलाफ आपसी भाईचारगी कायम करने के उद्देश्य से गुरुजी ने चालीस हजार किलोमीटर पैदल चलकर देश विदेश तक का दौरा किया ।  हिन्दू और मुस्लिम समाज से उनके दो प्रिय शिष्य बाला और मर्दाना पूरे जीवन उनके साथ रहे । वे समता मुल्क , सम्प्रदाय मुक्त समाज के निर्माण करना चाहते थे । अनुयायियों से खासकर महिलाओं को अधिक से अधिक सम्मान देने की बात कही। महिलाओं को मेहनत की कमाई खाने तथा नाम जपने तथा बांट-बांट कर खाने की बात कही ।

      उन्होंने " हक पराया नानकार , उस सूअर उस गाय, जैसे दोहे के माध्यम से कहा कि किसी के संपत्ति से लोभ नहीं करना चाहिए। लंगर प्रथा की भी शुरुआत की । 

           कार्यक्रम के बाद गुरुद्वारा परिसर में अरदास के साथ हीं लंगर का भी आयोजन किया गया । मौके पर श्रद्धालुओं ने कड़ा प्रसाद ग्रहण भी किया । समारोह में गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के प्रधान प्रीतपाल सिंह उर्फ लवली , ज्ञानी हरजीत सिंह,सरदार तेजेन्द्र सिंह,सरदार सेंकी सिंह आदि भी उपस्थित थे ।