न्यूज़ डेस्क। इन दिनों पटना का खुदा बख्श लाइब्रेरी चर्चा का विषय बना हुआ है और हो भी क्यों ना मामला जो भारत की सबसे पुरानी लाइब्रेरी में से एक को तोड़ने से जो जुड़ा है। दरअसल इन दिनों राजधानी पटना के अशोक राजपथ पर फ्लाईओवर निर्माण में आड़े आ रहे खुदा बख्श लाइब्रेरी के 100 साल से भी ज्यादा पुराने लाइब्रेरी के एक हिस्से को तोड़ने की योजना सरकार बना रही है।
खुदा बख्श लाइब्रेरी के एक हिस्से पर मंडरा रहे खतरे के बीच इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस कीमती धरोहर को बचाने की गुहार लगाई है, इसके अलावा इंटेक ने भी खुदा बख्श लाइब्रेरी बचाने के लिए सीएम को पत्र लिखा है। खुदा बख्श लाइब्रेरी प्रशासन और कई साहित्यकारों ने सरकार से इसे टूटने से बचाने की मांग की है साथ ही साथ बिहार के कई रंगकर्मी, छात्र, डॉक्टर, कलाकार आदि भी इसके विरोध में उतर आए हैं।
हालाकि पटना डीएम का कहना है कि इस निर्माण से लाइब्रेरी को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा,लॉर्ड कर्जन रीडिंग रूम को वहां से हटाकर उसी कैंपस में दूसरी जगह बनाया जा सकता है। लेकिन बिहार के साहित्य से जुड़े लोग इसे राष्ट्रीय धरोहर पर चोट करने से जोड़कर देख रहे हैं।
क्या है पूरा मामला....
बताते चलें अशोक राज पथ पर कारगिल चौक से पटना के एनआईटी पटना तक 2.2 किमी लंबा डबल डेकर फ्लाईओवर बनना है। बिहार पुल निर्माण निगम लिमिटेड के प्रस्तावित एलिवेटेड सड़क निर्माण की राह में कर्जन रीडिंग रूम और बगीचा बाधा बन रहा है।
कई दुर्लभ किताबों का संग्रह है यहां
आज इस लाइब्रेरी में 21000 से अधिक पांडुलिपियां हैं, जिनमें ज्यादातर अरबी और फारसी में हैं. लेकिन साथ ही 100 से अधिक संस्कृत में भी हैं। इसमें 2.5 लाख से अधिक किताबें हैं- उनमें से कुछ बहुत दुर्लभ हैं और यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में भी इनका जिक्र है।
कई बड़ी से बड़ी शख्शियत आते रहें है
खुदा बख्श लाइब्रेरी का दौरा मशहूर हस्तियों जैसे महात्मा गांधी, लॉर्ड कर्जन, वैज्ञानिक सीवी रमन, जवाहर लाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, एपीजे अब्दुल कलाम और कई राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश इस लाइब्रेरी में आ चुके हैं। खास कर पटना पहुंचने पर हर छोटी बड़ी शख्शियत इस लाइब्रेरी को जरूर देखना चाहता है।
खुदा बख्श लाइब्रेरी का इतिहास
खुदाबक़्श ओरियेन्टल लाइब्रेरी भारत के सबसे प्राचीन पुस्तकालयों में से एक है ।यह बिहार प्रान्त के पटना शहर में स्थित है। मौलवी खुदाबक़्श खान के द्वारा सम्पत्ति ए॰ पुस्तकों के निज़ी दान से शुरु हुआ। यह पुस्तकालय देश की बौद्धिक सम्पदाओं में काफी प्रमुख है। भारत सरकार ने संसद में 1969 में पारित ए॰ विधेयक द्वारा इसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में प्रतिष्ठित किया। यह स्वायत्तशासी पुस्तकालय जिसके अवैतनिक अध्यक्ष बिहार के राज्यपाल होते हैं, पूरी तरह भारत सरकार के संस्कृति मन्त्रालय के अनुदानों से संचालित है।