Header Ads Widget

छठ पर्व का है पौराणिक व वैज्ञानिक महत्व



मधुबनी - लदनियां से हरिश्चन्द्र यादव की रिपोर्ट :

कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्याणकारी स्वरूप के कारण माता की संज्ञा दी गई है। तिथि का संबंध सूर्य से होने के कारत यह उसकी सहोदरी है। यही कारण है कि इसमें भगवान सूर्य व छठ माता दोनों की पूजा होती है।

महाभारत की द्रौपदी ने सुहाग की रक्षा व विजयी होने के लिए छठ व्रत रखा था। मान्यतानुसार इस पर्व पर भगवान सूर्य की आराधना से छठी माता प्रसन्न होती है और लोग सुख- शांति व आरोग्य को प्राप्त होते हैं।

  इस पर्व में पवित्रता व उपासना का सर्वाधिक खयाल रखा जाता है। इसमें निरंतर 36 घंटे का निर्जला उपवास तन-मन की शुद्धि के साथ रखना होता है। 

     तीसरे व चौथे दिन व्रतियों द्वारा जलाशय में खड़े होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जो शहर से गांव तक आकर्षण का केन्द्र होता है। जलाशय में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देकर लोग सर्दी के दिनों में प्रकृति को ऊर्जावान बनाये रखने की प्रार्थना करते हैं।

 सर्दी के दिनों में चर्म रोग समेत शरीर में कई प्रकार के आन्तरिक परिवर्तन होते हैं। अक्सर पाचन क्रिया में परिर्वतन देखा जाता है। छठ का उपवास पाचन तंत्र के लिए लाभदायक माना जाता है। 

लंबे उपवास के कारण शरीर में जमा नुकसानदेह पदार्थ निकल जाते हैं या कम हो जाते हैं और शरीर की आरोग्य क्षमता बढ़ जाती है। शरीर की जीवनी शक्ति बलबती हो जाती है।

 सर्दी की शुरुआत में होने वाले इस पर्व में गुड़, ईंख, डाभ नीबू, आदि, हल्दी, नारंगी, नारियल, सेव आदि की प्रकृति गरम होती है, तो दूसरी तरफ इसमें इम्यून पावर बढ़ाने की शक्ति होती है।


 पर्व के बहाने इन फलों के सेवन से जाड़े के दिनों में होने वाली सम्भावित आधि व व्याधि से लड़ने में शरीर को मदद मिलती है।