Header Ads Widget

बिहार विधानसभा अध्यक्ष डॉ. प्रेम कुमार ने पटना A.N. College में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित होकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया।




पटना। बिहार विधानसभा अध्यक्ष डॉ. प्रेम कुमार ने पटना स्थित अनुग्रह नारायण कॉलेज (A.N. College) में इतिहास विभाग द्वारा आयोजित “औपनिवेशिक, उत्तर-औपनिवेशिक भारतीय संस्थान और भारत बोध” विषय पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित होकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया।

अपने संबोधन में डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि उत्तर-औपनिवेशिक विचारधारा ने पश्चिमी ज्ञान की उत्पत्ति और उसके प्रभावों की आलोचनात्मक समीक्षा प्रस्तुत की है। यद्यपि इस विचार ने उपनिवेशवाद की संरचनाओं को चुनौती दी है, फिर भी उपनिवेशवादी शासन का प्रभाव कई रूपों में आज भी विद्यमान है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी ‘विकसित दुनिया’ द्वारा थोपे गए गैर-औपनिवेशिक मानदंडों को बिना भारतीय अनुभव समझे स्वीकार करना भारत की ऐतिहासिक चेतना के साथ न्याय नहीं करता।

उन्होंने कहा कि यूरोपीय इतिहास-लेखन ने भारत को केवल एक पश्चिमी दृष्टि से परिभाषित करने का प्रयास किया, जबकि भारत की अपनी ऐतिहासिक अनुभूति, सांस्कृतिक स्मृतियाँ एवं अनुभव उससे बिल्कुल भिन्न हैं। भारतीय राष्ट्रवाद और उपनिवेश-विरोधी विचारधारा में सांस्कृतिक मान्यताओं, मूल्यों, परंपराओं और भारतीय जीवनदृष्टि का महत्वपूर्ण स्थान है। आधुनिकता और वैज्ञानिकता ने भारतीयों को नई सोच दी है परंतु साथ ही सांस्कृतिक स्मृतियों के क्षरण की चुनौती भी खड़ी की है।

डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि उत्तर-औपनिवेशिक दृष्टिकोण हमें यह समझने का अवसर देता है कि नए आध्यात्मिक और बौद्धिक युग की ओर भारत का उभार स्वाभाविक है। यह दृष्टिकोण भारतीयों को यह आत्मविश्वास भी देता है कि भारत अपनी सांस्कृतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपरा पर आधारित एक विशिष्ट सभ्यतागत पहचान रखता है जिसे पश्चिमी अवधारणाओं से नहीं आँका जा सकता।

उन्होंने आगे कहा कि आधुनिकता ने भारतीयों को अधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी है, परंतु इसके साथ सांस्कृतिक निरंतरता, मनोवैज्ञानिक सुरक्षा और परंपरागत मूल्यों की ओर लौटने की आवश्यकता भी बढ़ गई है। भारतीय समाज में व्यक्ति केवल एक इकाई नहीं, बल्कि समुदाय और संस्कृति का अभिन्न अंग है—यह दृष्टिकोण हमारी सभ्यता की विशेष पहचान है।

डॉ. प्रेम कुमार ने संगोष्ठी के आयोजकों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे अकादमिक प्रयास आने वाली पीढ़ी को भारत की ऐतिहासिक चेतना, सांस्कृतिक बोध और बौद्धिक आत्मनिर्भरता के प्रति जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस प्रकार की संगोष्ठियाँ युवा शोधकर्ताओं को नए विचार, नई दिशा और भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ने का अवसर प्रदान करेंगी।

कार्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रख्यात विद्वान, प्राध्यापक, शोधार्थी एवं छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

वहीं मौके पर माननीय कुलपति प्रो राजेश रंजन जी,कुल सचिव बीपी० त्रिपाठी जी,प्राचार्य प्रो रेखा रानी जी,प्राचार्य प्रो एन पी वर्मा जी,प्राचार्य प्रो अविनाश कुमार जी,सुपर्णा पटेल जी,विभागाध्यक्ष इतिहास प्रो अरविंद जी, डॉ जगन्नाथ गुप्ता जी सहित अन्य गणमान्य एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ