पटना: बिहार की सियासत एक बार फिर करवट लेने जा रही है। इस बार चर्चा में है राघोपुर विधानसभा सीट — वह सीट जहाँ से खुद तेजस्वी यादव, महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में मैदान में उतरते हैं।
लेकिन इस बार मुकाबला एकतरफा नहीं रहेगा। क्योंकि बीजेपी ने एक ऐसा दांव चला है जो पूरे समीकरण को पलट सकता है — उत्तर बिहार का सबसे प्रभावशाली राजपूत चेहरा, राकेश रोशन, अब बीजेपी के करीब हैं!
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में हुई उच्चस्तरीय बैठक में यह रणनीतिक निर्णय लिया गया कि राघोपुर में तेजस्वी यादव की घेराबंदी करने और उत्तर बिहार के राजपूत वोट बैंक को सशक्त करने के लिए राकेश रोशन को पार्टी में शामिल किया जाए। बताया जा रहा है कि उनके साथ प्रारंभिक बातचीत काफी सकारात्मक रही है, और जल्द ही औपचारिक घोषणा हो सकती है।
राकेश रोशन कोई साधारण नाम नहीं हैं।
उनकी लोकप्रियता उत्तर बिहार के गांव-गांव में गूंजती है।
कभी लोजपा के सबसे सक्रिय नेताओं में शुमार रहे राकेश ने पार्टी के लिए आईटी सेल की नींव रखी थी। उनकी अगुवाई में करीब 10,000 युवाओं को डिजिटल प्लेटफॉर्म के ज़रिए लोजपा से जोड़ा गया, जिसने चिराग पासवान की पकड़ युवा और राजपूत समाज में मज़बूत की।
2020 में जब उन्होंने एनडीए से अलग होकर लोजपा प्रत्याशी के रूप में राघोपुर से चुनाव लड़ा, तो सभी को चौंका दिया। तेजस्वी यादव के सामने अकेले मैदान में उतरकर 25,000 से अधिक वोट हासिल किए, जिससे साफ हुआ कि राकेश रोशन की जड़ें ज़मीनी स्तर पर कितनी मजबूत हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, “अगर उस चुनाव में राकेश रोशन एनडीए के उम्मीदवार होते, तो तेजस्वी यादव की जीत उस वक्त ही इतिहास बन जाती।”
उनकी राजनीतिक विरासत भी कमज़ोर नहीं है।
स्वर्गीय बृजनाथ सिंह, उनके पिता, उत्तर बिहार के राजपूत समाज के एक बेहद सम्मानित और निर्भीक नेता थे। अपराधियों ने AK-47 से उनकी हत्या कर दी थी। लेकिन उनके आदर्श आज भी जीवित हैं — हर साल “वीर बृजनाथ सिंह दिवस” के रूप में उनके बलिदान को याद किया जाता है।
राजपूत समाज में राकेश रोशन को आज उसी विरासत के वारिस और “युवा संघर्षशील चेहरा” के रूप में देखा जाता है।
पिछले साल तिरहुत स्नातक चुनाव में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था।
जहाँ एनडीए के 5 दलों के गठबंधन को मात्र 10,000 वोट मिले, वहीं राकेश ने बिना किसी संगठन या संसाधन के 4,000 वोट हासिल किए — यह बताने के लिए पर्याप्त था कि जनता का भरोसा व्यक्ति पर है, पार्टी पर नहीं।
अब अगर वे बीजेपी में शामिल होते हैं, तो राघोपुर का सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल जाएगा।
यादव बहुल इस सीट पर राजपूत वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बीजेपी मान रही है कि राकेश रोशन के साथ आने से न सिर्फ राघोपुर बल्कि पूरे उत्तर बिहार में राजपूत एकता और युवा ऊर्जा का नया उभार देखा जा सकता है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्री अमित शाह स्वयं इस रणनीति पर नजर रखे हुए हैं।
अगर यह समीकरण सधा, तो तेजस्वी यादव के लिए यह अब तक की सबसे कठिन लड़ाई साबित होगी।
जहाँ पहले राघोपुर “सुरक्षित गढ़” माना जाता था, वहीं अब यह सीट बिहार की राजनीति का “सबसे बड़ा रणक्षेत्र” बनने जा रही है।
संक्षेप में कहें — उत्तर बिहार में सियासत की नई पटकथा लिखी जा रही है, और उसके केंद्र में हैं राकेश रोशन।



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