दिनांक 01.04.2025! 'चैत रंग उत्सव' 2025' का प्रयास रंग अड्डा पर समापन हुआ। विगत 27 मार्च 2025 से शहर के इस नये रंग अड्डे पर लगतार 5 दिन विभिन्न रंगो से दर्शक सराबोर होते रहें। आज छठे दिन उत्सव के समापन के अवसर पर मिथिलेश सिंह द्वारा लिखित निर्देशित नाटक 'उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान' का मंचन किया गया।
मंचन पूर्व संस्था के अध्यक्ष पदमश्री प्रो० श्याम शर्मा, वरिष्ठ रंगकर्मी विनित कुमार झा, विरिष्ठ रंगकर्मी संजय उपाध्याय, किरण कांत वर्मा, सुबंति बनर्जी और शहर के अन्य गण्मान्य रंग प्रेमियों ने दीप प्रज्जोलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। सभी आगंतुक अतिथियों को संस्था के विरिष्ठ रंगकर्मी रवि भुषण 'बबलु' ने पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया।
नाट्य समाप्ति के बाद संस्था के महासचिव/निर्देशक मिथिलेश सिंह ने कहा कि चैत रंग उत्सव के बाद 'प्रयास रंग अड्डा' पर कला के विभिन्न रंग से पटना के दर्शक रू-ब-रू होते रहेंगे। धन्यवाद ज्ञापन संस्था के उपाध्यक्ष बाँके बिहारी साव ने किया।
प्रयास, पटना (बिहार) की नाट्य प्रस्तुति
'उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान (कथासार)
कला संस्कृत एवं युवा विभाग, बिहार सरकार, जिला प्रशासन बक्सर ने अवसर दिया। ऊपरवाले ने शब्द दिया, लिखा गया नाटक 'उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान'। इस नाटक की पहली प्रस्तुत 21 मार्च 2025 को डुमरांव, बक्सर (बिहार) में उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान महोत्सव-2025 के अवसर पर हुई थी। आज 'चैत रंग उत्सव-2025' के अवसर पर इसकी दूसरी प्रस्तुति है।
21 मार्च 1916 को बिहार के डुमराँव के टेढ़ी बाजार में जन्में कमरूद्दीन जो बाद में उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान हो गए। उनकी माता मिट्ठन बाई और पिता पैगम्बर ख़ान थे। उनकी पैदाईशी तारीख ने अभी उनका पीछा नहीं छोड़ा। 21 मार्च उनकी पैदायसी तारीख है तो 21 अगस्त 2016 को वह दुनिया से रुख़्सत कर गये।
महान शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान दुनिया को अलविदा कहने के पहले उनकी जिन्दगी में कई ऐसे पहलू है, जिन्हें सभी को नाटक में दिखाना थोड़ा मुश्किल काम है। नाटक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान के कथानक को दो साजिंदे सूत्रधार के रूप में घटनाक्रम को सुनाते है।
जब वो पैदा हुए तो उनके पिता के मुख से एक ही शब्द निकला 'बिस्मिल्लाह'। कमरूद्दीन से वह उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान हो गये। दस वर्ष की उम्र में वो बनारस अपने पिता के साथ मामा के पास चले गए, मामा भी शहनाई वादक थे। उन्होंनें मामा से शहनाई की तालीम ली। वैसे उनके अब्बा जो खुद शहनाई वादक थे, उन्होंने 6 साल की उम्र में डुमरांव के बाँके बिहारी मंदिर में शहनाई दिया था। इस साज को वह कभी साथ नहीं छोड़ा।
शहनाई को वो संगीत के दुनिया में उस मुकाम तक ले गए, जिस मुकाम को अभी तक कोई छू नहीं पाया है। कई राष्ट्रीय/अन्तराष्ट्रीय पुरस्कारों से वह नवाजे भी गए। 15 अगस्त 1947 को आज़ादी के पहले दिन संगीतमय तोहफा दिए थे। उनकी बेगम मुग्गन खानम थी। अपने शौहर से बेइंतहां प्यार करती थी। हालांकी उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान शहनाई को दुसरी बेगम कहते थे। उनकी शहनाई से पूरे परिवार का परवरिश होता था। उनके साजिंदे भी उस्ताद पर ही निर्भर थे। अपने घर में 60 लोगों का खाना बनने पर वहा मजाक में कहते थे, मैंने बिस्मिल्लाह ख़ान होटल भी खोल रखा है। अमेरिका से लाख बुलावा आने पर भी वो वहाँ नहीं गए, वो बनारस में ही रहना पसंद किए।
उनका कहना था, 'दुसरी जगह रस बनाना पड़ता है. यहाँ बना-बनाया रस है, यानि 'बनारस'। कहीं कोई जलसा ना हो और उस्ताद बनारस में हो तो गंगा किनारे शहनाई हो बजाते थे। उनका कहना था शहनाई की सुराखों पर अपनी उंगुलियाँ रखता हूँ तो वह 'अल्लाह हो जाता। शहनाई तो अल्लाह बजाते हैं, फिर उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान कहाँ है, जिसे अल्लाह ने बनाया है। मेरा कहना है...
"सारंगी गम में बजाया जाता है, मगर ये कोठे पर कैसे पहुँच गया। शहनाई खुशी में बजाई जाती है, गनीमत है कि वह कोठे पर नहीं गई।
पात्र परिचय (मंच पर)
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान : दीपक आनंद
बेगम मुग्गन खानम : रजनी शरण
जुम्मन मियाँ : आशिष कुमार विद्यार्थो
फखरू मियाँ : अभिशेष कुमार
गंगा : पुष्पा
नर्स : बीना गुप्ता
बाँसुरी बाला: मास्टर साजन कुमार
मंच के परे
संगीत : बृज बिहारी मिश्रा
प्रकाश संरचना : मनीष कुमार, जितेंद्र राज जेमी
संपत्ति इन्चार्ज / लेखा अधिकारी : रामेश्वर कुमार
रूप सज्जा : उदय कुमार शंकर
कला : सत्य प्रकाश
सेट निर्माण : सुनीन शर्मा
सेट निर्माण सहायक : श्याम मिश्रा, सत्यनारायण कुमार
वस्त्र विन्यास : रूपा सिंह, गुड़िया कुमारी
मंच सहयोग: राकेश कुमार, विजय महतो
प्रस्तुति नियंत्रक गिरिश मोहन, विनोद कुमार
ध्वनि / सह निर्देशक रवि भूषण बबलू
सहयोग : हज्जु म्यूजिकल थियेटर, म्यूजिक वर्ल्ड, पटना,
हिम्मत बैंड, सुल्तानगंज, पटना
नाटय रूप सतेन्द्र स्वामी
नाट्य कथा एवं निर्देशनः मिथिलेश सिंह