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गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ.अरुण तिवारी का हुआ निधन।क्लिनिक पर उनके चाहने वालों की उमड़ी भीड़।




पटना। बिहार के जाने माने डॉक्टर अरुण तिवारी का निधन हो हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। पटना में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके जाने से चिकित्सा क्षेत्र में शोक की लहर है। बिहार में सबसे कम कंसल्टेशन फीस लेने के कारण उनके मरीजों ने उन्हें गरीबों का मसीहा कहा।

सुबह छह बजे से पहले ही राज्य के दूर-दराज इलाकों समेत आसपास के राज्यों के मरीजों का जमावड़ा महेन्द्रू के रानी घाट स्थित एक क्लिनिक पर लगने लगता था। सुबह से शाम तक डॉक्टर तिवारी तीन शिफ्ट में करीब 300 मरीजों को प्रतिदिन देखते थे। उनके जाने के बाद उनके आवास पर क्लिनिक पर उनके चाहने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी।

डॉ.अरुण कुमार तिवारी का जन्म पटना में 1946 में हुआ था। पिता अंबिका प्रसाद तिवारी का प्रिटिंग प्रेस था, जबकि माता हेमलता गृहिणी थीं। पढ़ाई-लिखाई सेंट जेवियर और पटना मेडिकल कॉलेज से हुई थी। एमबीबीएस की पढ़ाई साल 1963 से 1969 तक हुई। इसमें बाद एमडी किया। 1975 में पहली नौकरी मुंगेर में लगी। इसके बाद पीएससीएच में रेजिडेंट फिजिशियन बने। इसके बाद डॉ तिवारी मुजफ्फरपुर मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर थे। 1987 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। पटना के महेंद्रू में अपना क्लिनिक खोला। उस समय वह मात्र 12 रुपये में मरीजों का इलाज करते थे। सबसे कम, सस्ती दवा लिखने और सटीक इलाज करने के कारण वह जल्दी ही लोकप्रिय हो गए। उनका तर्क था कि बाजार में कई दवाएं एक रुपए में भी मिलती हैं और दस रुपए में भी। आखिर हम किसी मरीज को दस रुपए की दवा क्यों लिखें, जबकि काम दोनों एक ही तरह करता है।

वहीं पटना के अधिकतर लोगों ने कहा कि आज के दौर में डॉक्टर जहां मोटी राशि केवल फीस के लिए वसूलते हैं और महंगी-महंगी दवाइयां लिखते, ऐसे में डॉक्टर तिवारी भगवान से कम नहीं थे। अमीर और गरीब के बीच वह फर्क नहीं करते थे। उन्होंने लोगों की सेवा में अपना पूरा जीवन बीता दिया। उनके जाने से समाज को बहुत बड़ी क्षति हुई है।