Header Ads Widget

कायस्थों के आराध्य देव हैं भगवान चित्रगुप्त डा. नम्रता आनंद



पटना, 06 अप्रैल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के रचयिता भगवान बह्मा ने एक बार सूर्य के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा कि वह किसी विशेष प्रयोजन से समाधिस्थ हो रहे हैं और इस दौरान वह यत्नपूर्वक सृष्टि की रक्षा करें। इसके बाद बह्माजी ने 11 हजार वर्ष की समाधि ले ली। जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके सामने एक दिव्य पुरूष कलम-दवात लिए खड़ा है।बह्माजी ने उसका परिचय पूछा तो वह बोला, ''मैं आप के शरीर से ही उत्पन्न हुआ हूं। आप मेरा नामकरण करने योग्य हैं और मेरे लिये कोई काम है तो बतायें।'' 

बह्माजी ने हंसकर कहा, ''मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए होइसलिये 'कायस्थ' तुम्हारी संज्ञा है और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होगे।''धर्म-अधर्म पर धर्मराज की यमपुरी में विचार तुम्हारा काम होगा। अपने वर्ण में जो उचित है उसका पालन करने के साथ-साथ तुम संतान उत्पन्न करो। इसके बाद श्री ब्रह्माजी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गये। भगवान चित्रगुप्त कलम के देवता है। भगवान चित्रगुप्त कलम को देवता माना जाता है। भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने से साहस, शौर्य, बल और ज्ञान की प्राप्ति होती है। भगवान चित्रगुप्त ने ही अनुशासन और दण्डविधान को बनाया है। उनके बनाए दण्ड विधान का पालन ही उनकी आज्ञा से यमराज और उनके यमदूत कराते हैं। 

पुराणों के अनुसार चित्रगुप्त पूजा करने से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। चित्रगुप्त का विवाह एरावती और सुदक्षणा से हुआ। सुदक्षणा से उन्हें श्रीवास्तव, सूरजध्वज, निगम और कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुये जबकि एरावती से आठ पुत्र रत्न प्राप्त हुये जो पृथ्वी पर माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड़, अस्थाना, अम्बष्ठ, भटनागर और बाल्मीक नाम से विख्यात हुये।भगवान श्री ब्रह्माजी के अंश, भगवान #चित्रगुप्त जी के पावन प्रकटोत्सव के शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।