SON OF SIMANCHAL GYAN MISHRA
रमजान महीने की शुरुआत हो चुकी है रमजान हिजरी कैलेंडर और कमरी साल का नवॉ महीना है मजहब-ए-इस्लाम मे रमज़ान महीने की बड़ी फजीलते बयान की गई है रमज़ान एक ऐसा बा-बरकत महीना है जिसका इंतेजार साल के ग्यारह महीने हर मुसलमान को रहता है. इस्लाम के मुताबिक़ इस महीने के एक दिन को आम दिनों की हज़ार साल से ज़्यादा बेहतर (खास) माना गया है. मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों पर रोजा फर्ज होता है माहे -रमज़ान में रखा जाने वाला रोज़ा हर तंदुरुस्त (सेहतमंद) मर्द और औरत पर फर्ज़ होता है. रोज़ा छोटे बच्चों, बिमारों और सोच-समझ ना रखने वालों पर लागू नहीं होता.
हालांकि, ये रोज़े इतने खास माने जाते हैं कि, इन दिनों में किसी बीमारी से ग्रस्त पीड़ित या पीड़िता के ठीक होने के बाद इन तीस दिनों में से छूटे हुए रोज़ों को रखना ज़रूरी होता है. रमज़ान में सहरी, इफ़्तार के अलावा तरावह की नमाज की भी बेहद अहमियत है|
क्या होती है तरावीह?
वैसे तो, रमज़ान जिसे इबादत के महीने के नाम से जाना जाता है, जो इस महीने के चांद के दिखते ही शुरू हो जाता है. रमज़ान का चांद दिखते ही लोग एक दूसरे को इस महीने की मुबारकबाद देते हैं. फिर उसी रात से तरावह नमाज का सिलसिला शुरु हो जाता है. तरावह एक नमाज़ है, जिसमें इमाम (नमाज़ पढ़ाने वाला) नमाज़ की हालत में क़ुरआन पढ़कर नमाज़ में शामिल लोगों को सुनाता है. इसका मकसद, लोगों की क़ुरआन के ज़रिए अल्लाह की तरफ से भेजी हुई बातों के बारे में बताना है. तरावीह को रात की आखरी, यानी इशां की नमाज़ के बाद पढ़ा जाता है. पुरे रमजान 20 रिकाअत तरावीह पढ़ना सुन्नते मोएक्केदा (जरुरी) और तरावीह मे एक कुरआन सुनना भी सुन्नत है इसमें हर मस्जिद अपनी सहूलत के मुताबिक, रमज़ान के तीस दिनों में से तरावीह पढ़े जाने के दिन तय कर लेती है और उन्हीं दिनों में क़ुरआन को पूरा पढ़ते और सुनते हैं. आमतौर पर तरावीह की नमाज़ में देढ़ से दो घंटों का वक़्त लग जाता है.
रोजे का मक़सद
रोज़े के मायने सिर्फ यही नहीं है कि, इसमें सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहो. बल्कि रोज़ा वो अमल है, जो रोज़दार को पूरी तरह से पाकीज़गी का रास्ता दिखाता है. रोजा इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई का रास्ता दिखाता है. महीने भर के रोजों को जरिए अल्लाह चाहता है कि इंसान अपनी रोज़ाना की जिंदगी को रमज़ान के दिनों के मुताबिक़ गुज़ारने वाला बन जाए. रोज़ा सिर्फ ना खाने या ना पीने का ही नहीं होता, बल्कि रोज़ा शरीर के हर अंग का होता है. इसमें इंसान के दिमाग़ का भी रोज़ा होता है, ताकि इंसान के खयाल रहे कि उसका रोज़ा है, तो उसे कुछ गलत बाते गुमान नहीं करनी. उसकी आंखों का भी रोज़ा है, ताकि उसे ये याद रहे कि इसी तरह आंख, कान, मुंह का भी रोज़ा होता है ताकि वो किसी से भी कोई बुरे अल्फ़ाज ना कहे और अगर कोई उससे किसी तरह के बुरे अल्फ़ाज कहे तो वो उसे भी इसलिए माफ कर दे कि उसका रोज़ा है. इस तरह इंसान के पूरे शरीर का रोज़ा होता है, जिसका मक़सद ये भी है कि इंसान बुराई से जुड़ा कोई भी काम ना करें.
गमखारी का महीना है रमज़ान
कुल मिलाकर रमज़ान का मक़सद इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई के रास्ते पर लाना है. इसका मक़सद एक दूसरे से मोहब्बत, प्रेम,भाइचारा और खुशियां बांटना है. रमज़ान का मक़सद सिर्फ यही नहीं होता कि एक मुसलमान सिर्फ किसी मुसलमान से ही अपने अच्छे अख़लाक़ रखे. बल्कि मुसलमान पर ये भी फर्ज है कि वो किसी और भी मज़हब के मानने वालों से भी मोहब्बत, प्रेम, इज़्ज़त, सम्मान, अच्छा अख़लाक़ रखे. ताकि दुनिया के हर इंसान का एक दूसरे से भाईचारा बना रहे. गरीब मजलूम का ख्याल रखें.
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