पटना- आधुनिकता के इस दौर में युवाओं के बीच ग्रामीण शिल्प एवं हस्तकला का क्रेज बिहार सरस मेला में देखने को मिल रहा हैं । आज का युवा वर्ग के लिए अपने घर के साज-सज्जा हेतु लिए ग्रामीण उद्धमियों द्वारा निर्मित उत्पाद उनकी पहली पसंद बने हुए हैं । और यही वजह है कि मेला में खरीद-बिक्री का आंकड़ा उतरोत्तर वृद्धि कर रहा है। महज चार दिनों में खरीद-बिक्री का आंकड़ा 3 करोड़ 29 लाख रहा । रविवार 18 दिसंबर को 1 करोड़ 68 लाख के उत्पादों एवं व्यंजनों की खरीद-बिक्री हुई । रविवार को सवा लाख से ज्यादा लोग भी आये ।
बिहार सरस मेला कई मायने में खास है । एक तरफ ग्रामीण शिल्प, हुनर एवं उत्पाद और व्यंजन को प्रोत्साहन एवं बाज़ार तो दे ही रहा है सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनायें भी फलिफुत होती हुई दिख रही हैं । बिहार सरकार द्वारा जीविका द्वारा संचालित “सतत जीविकोपार्जन योजना” से लाभान्वित परिवारों की जिन्दगी में आये बदलाव की बानगी सरस मेला के स्टॉल पर प्रदर्शित हो रही है । सारण जिला के मांझी गाँव से आई सीता देवी के पति की मृत्यु शराब सेवन से हो गई थी । पति की मौत के बाद वो असहाय हो गई थी । लेकिन सतत जीविकोपार्जन योजना ने उन्हें स्वावलंबन की राह दिखाई है । उन्हें बजरंग बलि स्वयं सहायता समूह से जोड़कर उनके हुनर को बाज़ार से जोड़ा गया । सीता देवी ने सिक्की पोल की चूड़िया, बाली, टोकरी आदि का निर्माण कर उन्हें बेच रही हैं । सरस मेला में वो पहिली बार आई हैं । महज चार दिन में सीता दस हजार रुपये से ज्यादा का उत्पाद बेच चुकी हैं।
सीता बताती हैं कि जीविका से जुड़कर उनके जीवन में बदलाव आया है । पति की मौत का गम तो है लेकिन स्वावलंबन और सशक्तिकरण की राह ने उनके जीवन को बदल दिया है । इस तरह की कई ग्रामीण महिलाएं अपने जीवन में आये बदलाव को लेकर सरस मेला में उपस्थित है । जहाँ महिला सशक्तिकरण की झलक देखते ही बन रही है । कल तक घर की चाहरदीवारी में कैद गाँव की महिलायें अब बाहर निकल कर अपने हुनर से बनाये गए उत्पादों द्वारा अपनी प्रतिभा और क्षमता से लोगों को न सिर्फ चकित कर रही हैं बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में नित नया आयाम स्थापित कर रही है ।
ग्रामीण शिल्प उत्पाद , हुनर एवं व्यंजन के प्रति आगन्तुकों का आकर्षण यो है हीं बिहार की लोककला , संस्कृति एवं परंपरा का प्रदर्शन भी जारी है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतगत सोमवार को महिला बाल विकास निगम के तावाधन में विद्या केंद्र के कलाकारों द्वारा “दहेज़ से करो परहेज” लघु नाटक की प्रस्तुति की गई । तत्पश्चात मुस्कान सांस्कृतिक मंच द्वारा लोक गीत की प्रस्तुति हुई । कमलेश कुमार देव एवं लाडली पाण्डेय ने अपने गीतों से शमा बाँधा । “कहवां के पियर माटी कहंवा के कुदाल हो” जैसे गीतों ने खरमास में शादी व्याह के मौसम की याद ताज़ा कर दी । वाद्य यंत्रो पर अनुज, काली राज एवं राजन ने सुमधुर संगीत से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया ।
सेमिनार हॉल में “सहकारी समितियों तथा सहकारिता के महत्व” पर चर्चा हुई । इस कार्यक्रम इस सेमिनार में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की स्वेता कुजूर तथा डी.एन.ए के राजेश कुमार ने दर्शकों को सहकारिता के विभिन आयामो के बारे में भी बताया गया । इस दौरान जीविका के डा.रितेश कुमार, परियोजना प्रबंधक, जीविका ने जीविका के संकुल स्तरीय संघ के निबंधन के विषय में बताया।
मेला में 5 ग्राहक सेवा केंद्र क्रेताओं और विक्रेताओं के सुविधा के लिए स्थापित किये गया हैं । इन स्टॉल पर रुपये की जमा निकासी हो रही है ।
सांस्कृतिक कार्यक्रम, समसामयिक विषयों पर परिचर्चा एवं लघु तथा नुक्कड़ नाटकों की प्रस्तुति मेला परिसर में प्रतिदिन हो रही है ।
बिहार सरस मेला में बिहार, झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उड़ीसा, केरला, आसाम, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, मणिपुर, मेघालय, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड , राजस्थान, मध्य प्रदेश एवम जम्मू कश्मीर की स्वयं सहायता समूह और स्वरोजगारी अपने शिल्प, कला एवं उत्पाद को लेकर उपस्थित हैं।
विभिन्न स्टॉल्स पर आचार-पापड़ , रोहतास का सोनाचुर चावल और भागलपुर के कतरनी चावल लोगो द्वारा बहुत पसंद किये जा रहे है । पापड़, मिठाई , मुरब्बे, बक्सर की सोन पापड़ी, रोहतास की गुड़ की मिठाई, खादी के परिधान, अगरबत्ती, लाह की चूड़ियां, सीप और मोती से बने श्रृगार की वस्तुएं , घर- बाहर के सजावट के सामान, खिलौने के अलावा मधुबनी पेंटिंग पर आधारित मनमोहक कलाकृतियाँ, कपड़े , कालीन, पावदान, आसाम और झारखण्ड से आई बांस और ताड़-खजूर के पत्ते से बनी कलाकृतियाँ गाँव की हुनर को प्रदर्शित करते हुए लोगों को मुग्ध कर रही हैं । सहारनपुर के लकड़ी के फर्नीचर, झूले और साज-सज्जा के उत्पादों की खूब बिक्री हो रही है। कृत्रिम फूल और बचपन के पारंपरिक खिलौनों की भी मांग है ।
मेला पूर्णत: प्लास्टिक मुक्त है और यहां फन जोन, पालना घर और बाइस्कोप आकर्षण के खास केंद्र बने हुए हैं ।