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कालिदास रंगालय में आज संध्या नाटक सिदो कान्हू का हुआ मंचन



नाटक का सार

कार्ल मार्क्स ने जिसे "भारत की प्रथम जनक्रांति" कहा था, वह था सन 1855-56 का संथाल विद्रोह या हूल, जिसके नायक दो भाई थे- सिदो मुर्मू और कान्हू मुर्मू। इनका जन्म संथाल परगना क्षेत्र के भोगनडीह गाँव में हुआ था। इन दोनों ने ब्रिटिश सत्ता, उनके कर्मचारियों, पुलिस, महाजन एवं ज़मींदारों के ख़िलाफ़ हूल किया, जिसका नारा था- करो या मरो, अंग्रेज़ो हमारी माटी छोड़ो। इनके आह्वाहन पर 30 जून, 1855 को भोगनडीह में 400 गाँवों के संथाल आदिवासियों ने एक सभा की तथा सिदो को राजा और कान्हू को मंत्री चुनकर विद्रोह का शंख फूँका गया। 



संथाल अपने तीर- धनुष और कुल्हाड़े लेकर लड़ने को चल दिए। आरंभ में उन्हें जीत मिली। ज़मींदार- महाजन और गोरे उनके डर से भाग गए, परंतु अंग्रेज़ो के पास सेना की कमी नहीं थी और उनके पास आधुनिक तोप और बंदूकें थी। अंततः संथालों की हार हुई। सिदो-कान्हू और उनके भाई- बहन वीरगति को प्राप्त हुए। झारखंड के संथाल आज भी उन शहीदों को याद करते है, पर उस क्षेत्र के बाहर उनका नाम तक कोई नहीं जानता। यह नाटक उन्हीं गुमनाम क्रांतिकारियों से परिचित कराने का एक प्रयास मात्र है।




       कलाकार

जाहेरा एरा: कंचन झा
फूलो: राधिका कुमारी
झानो: सौम्या स्वराज
संथाली महिला: सुप्रीति रॉय
सिदो: कृष्णा कुमार
कान्हू: प्रवीण कुमार
चाँद: दीपक कुमार
भैरव: विष्णु कुमार
पुत्र/बंसी: सूरज कुमार
पिता: सुशांत चक्रवर्ती
भगत ज़मींदार: राज कुमार
महेश दारोगा: अभिषेक आनंद
सिपाही 1: रोहित कुमार
सिपाही 2/उदघोषक: पंकज प्रभात
कलेक्टर: रौशन गुप्ता
मारांग बुरु/ अंग्रेज़: प्रिंस राज
सूत्रधार: ज़फ़्फ़र आलम

          मंच परे

प्रकाश परिकल्पना: राजीव राय
मंच निर्माण: सुनील शर्मा 
वेशभूषा: कंचन झा 
रूप सज्जा: जितेन्द्र कुमार जीतू
रंग वस्तु: राज, दीपक, कृष्णा
नगाड़ा/पखावद: मो. इमरान
सहायक निर्देशक: अंज़ारूल हक़
लेखन, संगीत, परिकल्पना एवं निर्देशन: अविजित चक्रवर्ती
प्रस्तुति: रंग रूप, वैशाली
वित्तीय सहयोग: संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली
आभार: इमेज आर्ट सोसाइटी, पटना