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फारबिसगंज में अवैध लॉटरी के कारोबार का असली किंगपिंग कौन , कहीं पुलिस के संरक्षण से तो नहीं फैल गया है इतना बड़ा साम्राज्य ?



 SON OF SIMANCHAL GYAN MISHRA

फारबिसगंज अनुमंडलीय मुख्यालय शहर में डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर कथित रूप से पुलिस प्रशासन की गुप्त सहमति से अवैध लॉटरी के काले कारोबार चलना सर्वमान्य व खुला सत्य है । गाहे - बगाहे गिरफ्तारी भी होती है और धंधेबाज जेल भी जाते हैं । जेल से वापस लौटने के बाद पुनः इन गोरखधंधा में सम्मिलित हो जाते हैं । तो क्या पुलिस प्रशासन से लेकर खबरनवीसों को पता नहीं होता है ? सालोंभर चलने वाली इस लाइलाज बीमारी का पता केवल पर्व त्योहारों पर हीं क्यों चलता है यह भी एक माकूल सवाल है ।

     लब्बोलुआब यह की आखिर इस काले साम्राज्य का असली किंगपिंग है कौन और किस स्तर के पुलिसकर्मियों या अधिकारियों का इन धंधेबाजों को गुप्त संरक्षण मिलने के कारण ये इतने ताकतवर हो चले हैं कि किसी प्रकार का इन्हें खौफ नहीं है ? चर्चा तो ये भी है कि पुलिस विभाग में ही इस अवैध कारोबार को लेकर दो धड़े हैं । तभी तो फारबिसगंज अनुमंडल में अब तक इस गोरखधंधे को ले कई मामले दर्ज हुए हैं और दो दर्जन से अधिक गिरफ्तारियां भी हुए हैं पर जिला मुख्यालय अररिया में खुलेआम इस अवैध कारोबार का बेरोकटोक संचालन होता है लेकिन कारवाई और गिरफ्तारियां फारबिसगंज की तुलना में नहीं के बराबर होती है आखिर क्यों ? कहीं ये ऐसे अवैध कारोबारियों को उच्चाधिकारियों की गुप्त सहमति के संकेत तो नहीं ?

खैर जो भी हो कानून के हाथ लंबे होते हैं अगर इन हाथों का ईमानदारी से इस्तेमाल किये जायें तो आज भी ऐसे सफेदपोश सलाखों के पीछे कैद किये जा सकते हैं । देखना है कि कानून के रखवालों का ज़मीर जागता है या फिर सभी " हमाम में नंगे " होने वाले कहावत को पुनः चरितार्थ करते हैं जैसा सालों से जारी है ।