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लॉटरी का अवैध व्यापार अररिया जिले भर में ' कोढ़ में खाज ' बन लाइलाज हुआ । धंधेबाजों पर अंकुश लगाने में पुलिस विफलता सवालों के घेरे में


SON OF SIMANCHAL GYAN MISHRA 

राजधानी पटना से करीब पौने तीन सौ किलोमीटर दूर भारत - नेपाल सीमा पर हिमालय की तलहटी में बसी अररिया जिला यूँ तो प्रायः भू विवाद के लिये राज्यभर में सर्वाधिक चर्चित रहा है । मगर विगत कई वर्षों से प्रतिबंधित लॉटरी के अवैध व्यवसाय के उत्तरोत्तर विकास के चलते ' कोढ़ में खाज ' सा बन गया है । जिसका समुचित इलाज में पुलिस प्रशासन पूरी तरह विफल साबित हो रही है । कारणवश खासकर गरीब , मजदूर व निम्न आयवर्गीय लालची चरित्र के लोगों से ले भोली - भाली जनमानस तक का एक बड़ा वर्ग का जमकर आर्थिक शोषण हो रहा है । जिससे सामाजिक ताना बाना भी बिगड़ने लगा है । बुधवार को भी जमकर टिकटें बेची गयी जो की धंधेबाज़ों के सक्रियता का खुला प्रमाण है ।

     जानकर बताते हैं कि पुलिस प्रशासन के ढुलमुल रवैया और खबरनवीसों के लगातार धारदार लेखनी के अभाव में ( कारण चाहे जो भी रहा हो ) हीं इस अवैध व्यवसाय का साम्राज्य अब काफी बड़ा हो गया है । जिला मुख्यालय अररिया और फारबिसगंज अनुमंडल मुख्यालय में तो अब कुकुरमुत्ते की तरह यह धंधा फैल गया है । चर्चा तो यह भी है कि पुलिस की भांति खबरनवीसों को भी प्रभाव में ले धंधेबाजों ने लगभग इस धंधे को अवैध से वैध सा बना लिया है । राज्य भर में प्रतिबंधित होने के बावजूद मुजफ्फरपुर के जाली लॉटरी टिकट किंग उपेन्द्र सहनी गिरोह के मकड़जाल में उलझकर यह अवैध धंधा अरबों - खरबों तक पहुंच प्रशासन व सरकार को सीधी चुनौती दे रहे हैं । जिला मुख्यालय में तो ओरिजनल टिकट भी बड़े पैमाने पर धड़ल्ले से बिकते हुए देखे जा सकते हैं ।

        जानकार बताते हैं कि फारबिसगंज में सुभाष चौक , मटियारी , सुल्तान पोखर , पोस्ट ऑफिस चौक , लाइब्रेरी रोड़ , धर्मशाला चौक , आलम टोला , कादरी मोहल्ला , ढोलबज्जा , कस्टम ऑफिस चौक सिमराहा आदि एक दर्जन से अधिक स्थानों पर इस अवैध धंधे का संचालन खुलेआम होता है । पूर्व में पुलिस छापेमारी व गिरफ्तारियों की तुलना में इधर काफी दिनों से पुलिसिया कारवाई में विफलता धंधेबाजों के तकनीक से लैस हो धंधे के पैटर्न बदले जाने को बताया जा रहा है । साथ हीं पुलिस विभाग में अंदर हीं अंदर इस धंधे पर कारवाई को ले जहां मतभिन्नता है वहीं धंधेबाजों के समर्थकों ने यह भी समझाने में सफलता पा ली है की केवल पर्व त्योहारों के मौके पर पैसे के लिये खबरनवीसों की सक्रियता बढ़ती है । इसलिए ठोस कारवाई को ले फारबिसगंज पुलिस भी कमोबेश उधेड़बुन में है । हालांकि डीएसपी फारबिसगंज पंचायत चुनाव में व्यस्तता को भी कारण बताते हैं और समय पर कारवाई का भरोसा देते हैं ।

       वहीं चर्चा यह भी है की फारबिसगंज की तुलना में कई गुणा अधिक और ठस्से के साथ अररिया जिला मुख्यालय के मारवाड़ी पट्टी , रहिका टोला , चांदनी चौक , समाहरणालय परिसर , राम जानकी मंदिर , बस व टमटम स्टैंड , आर एस , जीरो माईल , भगत टोला , खरैया बस्ती आदि प्रमुख स्थानों पर चिक्कू यादव के नेतृत्व में प्रिंस , पांडेय जी , मोहन , दिलेर , मंतोष झा , टिंकू नास्ता वाला , बैजू सहित एक दर्जन धंधेबाजों ने इस अवैध व्यवसाय का प्रमुख " हब "बना लिया है । बाबजूद इसके फारबिसगंज की तुलना में न तो खबरनवीस और ना हीं पुलिस इस अवैध धंधों पर अपनी पैनी वक्रदृष्टि ठीक ढंग से डाल पाते हैं । जिससे इस काले व्यवसाय की जड़ें काफी गहरी हो गयी हैं ।

  कहते हैं की सरकारी आंकड़ों को देखने से भी प्रतीत होगा की फारबिसगंज में कुछ हद तक कारवाई दिखती भी है ,पर जिला में पुलिस कप्तान के होते हुए भी  शायद हीं वैसी कारवाई होती है । फारबिसगंज थाने में दर्ज दर्जनों प्राथमिकियां भी इसके प्रमाण हैं। सबसे खास बात यह की इन प्राथमिकियों के अनुसंधान में कम से कम तीन बार प्रमुख सरगना जाली लॉटरी किंग उपेन्द्र सहनी के नाम आये पर वरीय पुलिस अधिकारियों ने न जाने कैसे क्लीन चिट दिलवाने का काम किया । जिससे उनका और उनके गुर्गों का मनोबल बढ़ा हुआ है । जिला मुख्यालय में अवैध कारोबारियों के विरुद्ध छापेमारी , गिरफ्तारी  व मुकदमा दायर नहीं होने का नतीजा है की फारबिसगंज की तुलना में अररिया जिला मुख्यालय इस अवैध धंधेबाजों का अब एकमात्र ' सेफजोन ' तो बन हीं गया है । वहीं आला पुलिस अधिकारियों के प्रति आम व जानकर लोगों का विश्वास घटने लगा है ।