अनमोल कुमार यादव
Son of simanchal Gyan Mishra अररिया
मिड ब्रेन के तहत सिकटी मे 5-15 साल के बच्चो को शिक्षा दी जाती है जिसमे अभी तक 100 से भी ज्यादा बच्चा लाभ लेकर अपनी जिंदगी मे जबरदस्त बदलाव लाने मे सक्षम हो पाया है। और एक नई उत्साह से पढ़ाई कर रहे है जिसमे किसी भी चीज को बहुत जल्दी याद करने मे सक्षम हो गया है।
मिडब्रैन एक्टिवेशन class अभी सिकटी प्रखंड के विभिन्न जगह मे चल रहा है।
जैसे कि-उत्क्रमित मध्य विद्यालय डिठौरा, उत्क्रमित मध्य विद्यालय सोहागमारो,सरस्वती विद्या मंदिर ढेंगरी,RKCK college Bardaha. मे चल रहा है।
जो कि प्रत्येक जगह सप्ताह मे 1 दिन का class होता है।
आईए जानते है की मिड ब्रेन एक्टिवेट क्यों करे ??
जानिए इससे होने वाले लाभ
कोई भी व्यक्ति अपनी जिंदगी में अपने ब्रेन का 3-4 प्रतिशत ही उपयोग कर पाता है। यह चार प्रतिशत भी हम सिर्फ लेफ्ट ब्रेन का उपयोग करते हैं, जो लॉजिकल एप्रोच वाला है। राइट ब्रेन क्रिएटिव थिंकर होता है।
दोनों ब्रेन के बीच का ब्रिज है मिड ब्रेन। वह यदि एक्टिव हो जाए, तो बच्चा ऑल राउंडर बनता है, उसका IQ बढ़ता है। लेफ्ट ब्रेन स्कूल की पढ़ाई, लॉजिकल सोच और याद करने के लिए काफी उपयोगी है। लेकिन, राइट ब्रेन इनोवेशन और क्रिएशन के लिए जरूरी है।
हमारे मस्तिष्क के तीन भाग होते हैं। राइट ब्रेन, लेफ्ट ब्रेन (कंशियस, सबकंशियस) एवं मिड ब्रेन। अधिकतर हम सभी लेफ्ट ब्रेन का 90 फीसदी उपयोग करते हैं, जबकि राइट ब्रेन सिर्फ 10 फीसदी उपयोग किया जाता है। इस पद्धति के जरिए मेमोरी, कॉन्सेंट्रेशन, विजुलाइजेशन, इमेजिनेशन, क्रिएटिव माइंड का उपयोग जल्दी पढ़ने की कला जाग्रत कर सकेंगे ।
म्यूजिक, डांस, जिमिंग, पजल्स व गेम्स अभ्यास को आसान और रोचक पूरी बनाते हैं
यह पूरी प्रक्रिया वैज्ञानिक प्रणाली पर आधारित है।
अजय कुमार दास
इसमें बच्चों के कंफर्ट जोन में जाकर उन्हें अलग अलग स्टेप्स करवाए जाते हैं जैसे ब्रेन एक्सरसाइज, ब्रेन जिम, डांस, पजल्स, गेम्स तथा योग व ध्यान क्रियाएं सिखाई जाती हैं।जन्मांध, जन्म से गूंगे-बहरे या इंद्रीय संबंधी किसी दूसरी जन्मजात विकृति से पीड़ित बच्चों के लिए यह तकनीक प्रभावी नही है। लेकिन मेंटली-रिटायर्ड, सेरेब्रल पाल्सी व प्रोजेरिया जैसे मानसिक रोगों से पीड़ित बच्चों के लिये ये तकनीक थैरेपी का काम भी कर सकती है।
मिड ब्रेन एक्टिवेशन में कितना समय लगता है?
मिड ब्रेन एक्टिवेशन वैसे तो 2 दिन में हो जाता है. पहले और दूसरे दिन 6 घंटे अभ्यास कराया जाता है
इसके बाद इसका फॉलोअप दो घंटे हर हफ्ते करवाया जाता है। इनके लिए कारगर..करीब 3 माह के अभ्यास में बच्चों की इंद्रियां संवेदनशील होने लगती हैं।
हम अगर चाहते है बच्चा पूरे बैलेंस के साथ काम करे, तो इन दोनों के बीच का पॉइंट यानी मिड ब्रेन (पिनियल ग्लैंड) एक्टिव करना जरूरी है। बॉडी के लेफ्ट और राइट दोनों तरफ के पार्ट बराबर उपयोग करने की प्रेक्टिस कराई जाती है। म्यूजिक थेरेपी, मेडिटेशन, छोटी छोटी ब्रेन स्ट्रेंथ बढ़ाने की एक्सरसाइज से भी मिड ब्रेन एक्टिव होता है।
ट्रेनिंग और प्रॉपर कोर्स से 5 से 15 साल तक के बच्चों का मिड ब्रेन आसानी से एक्टिव हो सकता है। 15 की उम्र के बाद आने वाले हार्मोनल बदलाव मिड ब्रेन को पूरी तरह से एक्टिव नहीं कर पाते। इसलिए 15 की उम्र के बाद इसके एक्टिवेशन के चांस बहुत कम होते हैं। मिड ब्रेन एक्टिव होने पर बच्चा आंख पर पट्टी बांधकर भी चीजें और रंग पहचान लेता है।
मिड ब्रेन एक्टिवेशन कोर्स करने के बाद बच्चों में एकाग्रता की जबर्दस्त बढ़ोतरी.होती है, यहां तक की वे आंखों में पट्टी बांधकर किताबें पढ़ सकते हैं, विभिन्न रंगों को आसानी से पहचान सकते हैं। कोर्स करने के बाद छात्रों की जीवन शैली ही बदल जाती है। यह कोर्स ध्यान वैज्ञानिक तकनीक पर आधारित है, जिससे कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।
इस कोर्स के कई लाभ हैं जैसे आईक्यू बढ़ना, आत्मविश्वास बढ़ना, क्रिएटिविटी का विकास और गुस्से पर नियंत्रण।
बच्चा आंखें बंद करके पढ़ सकता है.आंखों पर पट्टी बांधकर किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छू कर, सूंघ कर उसके बारे मे सटीक बता देता है, मानो उसे खुली आंखों से देख रहा हो। अगर आप समझ रहे हैं कि को ये चमत्कारी ताकत जन्म से नहीं मिली है, तो ऐसा नहीं है। यह वरदान योग और विज्ञान के मिलेजुले चमत्कार से मिला है। चमत्कार नहीं; योग और विज्ञान का मिलाजुला प्रयोग यह मिड ब्रेन एक्टिवेशन टेक्निक के जरिये होता है।
इसमें लगातार अभ्यास, जिसमें बच्चों को ब्रेन-एक्सरसाइज, ब्रेन-जिम, मेडिटेशन और विशेष तौर पर कंपोज किए गए स्प्रिचुअल-म्यूजिक पर डांस कराया जाता है। भारतीय योग और जापानी तकनीक के मिले जुले अभ्यास से बच्चों की इंद्रियों को अतिसंवेदनशील बना दिया जाता है।
इस अभ्यास के बाद बच्चा अपने आस-पास के संसार को सभी इंद्रियों से महसूस कर पाता है। अति सूक्ष्मग्राही मिड ब्रेन एक्टिवेशन टेक्निक के लगातार अभ्यास से सूंघने और स्पर्श से चीजों को पहचानने की क्षमता बढ़ जाती है।
आंखों पर पट्टी बांध देने के बावजूद भी वह छू कर या सूंघ कर लिखे हुए को पढ़ लेता है। सूंघने की क्षमता और उंगलियां के स्पर्श से ऑब्जेक्ट(वस्तु) का सटीक बता देते है। और मिड ब्रेन पर उभर उठता है। नतीजतन वह ऑब्जेक्ट के बारे में सब कुछ बयां कर आम आदमी को अचंभे में डाल देता है। मेडिटेशन के अभ्यास से मिड-ब्रेन को शून्य पर केंद्रित करते हैं
बच्चों का आई-क्यू काफी बढ़ जाता है।
उसकी ग्रेस्पिंग पावर में वृद्धि हो जाती है।
आंखें बंद रख कर भी किसी भी दृश्य, वस्तु या व्यक्ति को विवरण पेश कर सकता है। नतीजतन स्मरण-शक्ति बढ़ जाती है।
बच्चे में एनालिटिकल एप्रोच उत्पन्न होने लगती है, नतीजतन निर्णय-भमता बढ़ती है।
प्रतिदिन 15 के अभ्यास से जीवन भर इस टेक्निक का लाभ लिया जा सकता है।
दिमागी रूप से कमजोर बच्चों के विकास के लिए यह तकनीक काफी फायदेमंद है।आज के दौर के तनाव भरे कंप्टीशन से बच्चों डिप्रेशन पैदा होने लगा है, इस तकनीक के अभ्यास से बच्चे में तनाव जनित आत्महत्या की प्रवृत्ति विकसित होने से रोका जा सकता है।इसके अभ्यास से बच्चों के अंदर कई तरह के पॉजीटिव चेंजेस आ जाते हैं।