अररिया/फारबिसगंज( ज्ञान मिश्रा)
किसी भी विकसित राष्ट्र की रीढ़ शिक्षा होती है और उस शिक्षा को समाज में सर्वमान्य करने वाले शिक्षक हमारी संस्कृति में श्रेष्ठ माने जाते रहे हैं लेकिन पिछले 15 माह से इन्हीं शिक्षकों की हालत बदतर हो गई है। शिक्षण कार्य से जुड़े कोचिंग संचालक एवं उस में कार्यरत शिक्षक एवं अन्य कर्मी दाने-दाने को मोहताज होने लगे हैं आर्थिक तंगी में लोग मानसिक तौर पर ग्रसित होकर कई इस दुनिया को छोड़ कर चले गए।
इस संदर्भ में ऑल इंडिया प्राइवेट कोचिंग एसोसिएशन के सदस्यों ने अपनी पीड़ा व्यक्त की एसोसिएशन के संस्थापक राशिद जुनैद कहते हैं कि हम कोचिंग संचालक व शिक्षक राष्ट्र निर्माण में लगे थे हमें क्या पता था कि यह दिन भी आएगा जब हम अपने परिवार की आजीविका के लिए दर-दर की ठोकरें खाएंगे आज दर्जनों कोचिंग संस्थान भाड़े की जमीन पर चलने के कारण बंद हो चुके हैं शिक्षक के परिवार में त्राहिमाम है। ऐसे में सरकार को तत्काल प्राइवेट शिक्षकों की सुध लेनी चाहिए और डीएलएड, बीएड, बीपीएड प्रशिक्षित शिक्षकों के आधार पर राहत मुहैया कराना चाहिए।
लूसेंट कोचिंग के निदेशक राकेश रंजन कहते हैं जिस तरह सरकार व्यवसाय क्षेत्र के लिए नियम बनाकर दुकानें खुलवा सकती है तो उसी तरह शिक्षण संस्थानों को भी खोलने का निर्णय नियमानुसार लेना चाहिए। शिक्षा का क्षेत्र सबसे अनुशासित और सुव्यवस्थित क्षेत्र है वही कोचिंग संस्थानों में खास तौर पर मानसिक तौर पर परिपत्र बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं जो कोविड-19 के नियमों का पूरी तरह पालन करते हैं।
आईपका की कार्यकारिणी सदस्य सुमन केसरी बताती हैं कि प्रारंभ से ही शिक्षण कार्य में अत्यधिक रुचि रही है इसलिए हमने खास तौर पर लड़कियों को कंप्यूटर शिक्षा में सबल बनाने के उद्देश्य से वेब टेक्नोलॉजी की स्थापना की। लेकिन पिछले 15 माह से बंद पड़े कोचिंग का भाड़ा, बिजली बिल, कंप्यूटर सिस्टम आदि के खर्च का बोझ अब सहने लायक नहीं रह गया है। ऐसी परिस्थिति में महिला सशक्तिकरण का मेरा सपना कहीं सपना तो नहीं रह जाएगा इस बात का डर लगा रहता है। आखिर सरकार का शिक्षा को लेकर क्या उद्देश है यह समझ से परे है। सरकार तत्काल संस्थान को उचित मापदंड के साथ खोलने की अनुमति दें या हमारी आर्थिक मदद करें।
स्टारलाइट कंप्यूटर सेंटर के दिव्यांग शिक्षक मिकाइल अंसारी कहते हैं कि मुझे इस बात का बिल्कुल दुख नहीं कि मैं दिव्यांग हूं दुख तो अब इस बात का है कि मैं दिव्यांग होने के साथ प्राइवेट शिक्षक हूं। और हमने अपने परिवार की जीविका के लिए इस कार्य को चुना था और आज मैं शिक्षक हूं इसलिए बेरोजगार और बेबस बन बैठा हूं अगर ऐसी स्थिति रही तो मेरे जैसा कोई भी शारीरिक दिव्यांग कभी शिक्षक नहीं बनना चाहेगा और सोचने की बात यह है हमारा राष्ट्र निर्माण कैसे होगा आखिर हम सब भी तो इंसान हैं यूं ही कब तक घर पर बैठे रहेंगे हमारा पेट कौन भरेगा इन बातों पर सरकार को सोचना चाहिए और हम शिक्षकों को आर्थिक मदद देना चाहिए।
अर्श टीचिंग सेंटर के निदेशक अरबाज अंसारी व बीके क्लासेस बोल बच्चा के बबलू कुमार पासवान करते हैं कि 15 महीनों में शिक्षा कार्य से जुड़े लोगों की स्थिति जर्जर हो गई है कितने कोचिंग संस्थान केवल इसलिए बंद हो गए क्योंकि वह भाड़े के मकान में संचालित थे मकान मालिक ने बकाया नहीं चुका पाने के कारण शिक्षा के मंदिर को उजाड़ दिया वही बिजली बिल भुगतान एवं अन्य कई प्रकार के खर्च बिना आमदनी के भुगतान करना पड़ रहा है जिसका दंश कोचिंग संचालकों के ऊपर साफ तौर पर दिखाई देता है।
कोचिंग संचालक अंकुश कुमार कहते हैं जिन शिक्षकों के मेहनत के कारण आज देश तरक्की की उड़ान भर रहा है आज जब देश कोविड-19 की विपदा से घिरा तो सबसे पहले सरकार ने इन्ही शिक्षकों के पंख काट दिए सरकार का हमेशा प्राइवेट कोचिंग संस्थानों और शिक्षकों के प्रति सौतेला व्यवहार रहा है सरकार को अपने रवैए में सुधार की आवश्यकता है क्योंकि बिना शिक्षा राष्ट्र का भविष्य पंगु हो जाएगा।
प्रियदर्शी फिजिक्स क्लासेस के निदेशक प्रियदर्शी कुमार, ब्राइट फ्यूचर एजुकेशन सेंटर हल्दिया के अंसार आलम, तन्हा कोचिंग सेंटर ढोलबज्जा के मंजूर तन्हा, न्यू लक्ष्य पॉइंट के अजय आनंद, के अलावे पवन कर्ण आदि ने अपनी पीड़ा व्यक्त की और सरकार से तत्काल राहत देने के साथ कोचिंग संस्थानों को खोलने की कवायद की।