सफलता के तीन आवश्यक अंग हैं- शुद्धता, धैर्य और दृढ़ता लेकिन इन सबसे बढ़कर जो आवश्यक है वह है प्रेम। पूज्य स्वामी विवेकानंद जी के द्वारा कही गई इस बात को यदि हम ठीक से समझ भी लें तो हमारे जीवन की कई समस्याओं का समाधान अपने आप ही हो जाएगा।
शुद्धता से मतलब है:- विचारों में शुद्धता। हमारे विचार शुद्ध हों, उनमें किसी भी प्रकार के कपट का मिलावट न हो। याद रखिये हमारे विचार हीं हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।
धैर्य:- धैर्यवान के लिए कुछ भी असंभव नहीं। एक धैर्यवान हीं कोयले के ढ़ेर में से हीरा निकालने की क्षमता रखता है पर एक चंचल मन वाला सामने पड़ी काम की वस्तु को भी अनदेखा कर आगे बढ़ सकता है। कहने का मतलब यह है कि धैर्यवान व्यक्ति जीवन में आये विपरीत परिस्थितियों से घबराता नहीं है। उसे असफलता में भी आगे आने वाली सफलता की गूँज सुनाई देती है।
दृढ़ता:- अपने कर्म के प्रति दृढ़ता, संकल्पों के प्रति दृढ़ता, सुविचारों के प्रति दृढ़ता आदि हीं हमारे जीवन में सफलता और प्रगति के सारे खोलती हैं।
अब जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है प्रेम। जहाँ प्रेम होता है वहाँ सब कुछ होता है और जहाँ प्रेम नहीं होता वहाँ कुछ भी नहीं बचता।
इन बातों को पिछले दिनों बिहार में हुई एक घटना के बाद उपज रही स्थितियों को केंद्र में रखकर समझने की कोशिश करते हैं:- "पिछले दिनों मधुबनी में हुई सामूहिक हत्या जैसे जघन्य अपराध को जातीय हिंसा के रूप में बदलने की कोशिश की जा रही है। सोशल मीडिया और अन्य प्रचार तंत्र के माध्यम से उस घटना को एक खास तरीके से प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है ताकि इसे अन्य रंग दिया जा सके।
हम सभी को यह समझना चहिए कि इस प्रोपगंडा से हमारे अपने विचार अशुद्ध न हों। अगर अगल-बगल कहीं ऐसी स्थिति बन भी जा रही है तो हम अपने जीवन में धैर्य का परिचय देते हुए उस स्थिति को काबू करने का प्रयास करें। अपने इस विचार पर हम दृढ़ रहें कि अपराधी सिर्फ अपराधी होता है उसका ताल्लुक सिर्फ अपराध से है न कि समाज से। हम अपने जीवन में प्रेम को सर्वोच्च स्थान दें। हमारे हृदय में सम्पूर्ण मानवता के प्रति प्रेम होना चाहिए। नफरत और घृणा वहीं आते हैं जहाँ प्रेम नहीं रहता। - डॉक्टर राजीव रंजन