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बाबा कपिलेश्वर महादेव मंदिर की महिमा अपरंपार, निःसंतानों को संतान की होती प्राप्ति

मधुबनी से आशीष / नगर से संवाददाता फिरोज आलम की रिपोर्ट। *बाबा कपिलेश्वर महादेव मंदिर की महिमा अपरंपार, निःसंतानों को संतान की होती प्राप्ति ॥* 

मधुबनी जिले के बाबा कपिलेश्वर महादेव मंदिर की महिमा अपरंपार है। प्राचीन इस मंदिर की चर्चा विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में भी है। जहां भक्तजनों की मनोकामनाएं पूर्ण होती रही है। जिला मुख्यालय से लगभग दस किलोमीटर और रहिका प्रखंड मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर एनएच 105 के किनारे है। प्रसिद्ध कपिलेश्वर मंदिर देवों के देव महादेव यानि भगवान शिव को सर्मिपत है। मंदिर के बाहर एक बहुत बड़ा तालाब है जिसके जल का इस्तेमाल सभी लोग शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए करते हैं।

इस मंदिर से जुड़ी एक बहुत प्राचीन कथा है जो आम लोगों के साथ ही श्रद्धालुओं के लिए प्रसिद्ध है। हजारों साल पहले यहां पर एक ऋषि रहा करते थे। वो ऋषि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उस ऋषि का नाम कर्दम ऋषि था। वह ऋषि भगवान शिव की कड़ी तपस्या करते थे और ध्यान किया करते थे। लेकिन वहां उन्हें जल नहीं मिल रहा था। तभी वहां पर चमत्कार हुआ, वरुण देव प्रकट हुए और उन्होंने ख़ुद एक तालाब निर्माण किया। वो तालाब आज भी वहां मौजूद है। मंदिर के उत्तर पश्चिमी दिशा में करीब 300 फीट की दूरी पर एक तालाब भी है। ऐसा कहा जाता है कि जब ऋषि कर्दम ध्यान करते थे तो वो इस तालाब के पानी का इस्तेमाल किया करते थे। तब यह तालाब बहुत ही छोटा था। किंदवंती है कि इसे खुद वरुण देव ने बनाया था। ऐसा कहा जाता है इस मंदिर के तालाब में नहाने से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं और वह पवित्र हो जाता है। कहते हैं कि जो नि:संतान हैं उन्हें यहां पर भगवान के दर्शन करने पर संतान की प्राप्ति होती है।

इस मंदिर के पवित्र गर्भगृह में भगवान शिव का मधु के रंग का लिंग स्थित है। यह लिंग काले पत्थर पर स्थित है और यह दिखने में अष्टकोनी है। सबसे पहले यह मंदिर भी अष्टकोनी हुआ करता था। लेकिन 1934 में आये भूचाल से मंदिर को बड़ी क्षति पहुंची। जिसके कारण मंदिर को अपना अष्टकोनी रूप खोना पड़ा। बाद में फिर दरभंगा महाराज ने इस मंदिर की मरम्मत कर इसका जीर्णोद्धार कराया। शिव मंदिर के उत्तर पश्चिमी दिशा में बटुक भैरव का भी एक छोटा सा मंदिर है। यहां पर देवी पार्वती का दो मंदिर है। पश्चिम दिशा में स्थित इस पार्वती मंदिर का निर्माण भी दरभंगा महाराज ने 1937 में करवाया था। पार्वती देवी का मंदिर भगवान शिव के मंदिर से लगभग 100 फीट की दूरी पर है। पवित्र गर्भगृह के पश्चिम दिशा में भगवान विष्णु का एक छोटा सा मंदिर है। जिसमें भगवान गणेश, विष्णु, नंदी और ब्रह्मदेव की छोटी-छोटी मूर्तियां भी दिखाई देती है। वहां पर एक काला पत्थर भी है जिस पर भगवान विष्णु के चरण की प्रतिमा भी दिखाई देती है।

इस मंदिर में कांवरियों के जलाभिषेक का खास महत्व है। सावन महीने में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए पूरे बिहार से लोग यहां पर इकट्ठा होते है। मंदिर परिसर का क्षेत्र बहुत ही बड़ा है और परिसर के बीचोबीच भगवान शिव का मंदिर है। उसके बगल में पार्वती मंदिर और हनुमान मंदिर सहित अन्य देवी देवताओं के मंदिर हैं। महाशिवरात्रि के दिन यहां पर भगवान शिव की बड़ी धूमधाम से बारात निकाली जाती है।

इस प्रसिद्ध मंदिर में भगवान शिव को चढ़ाये जाने वाले विशेष भोग की भी खूब चर्चा होती रही है। भगवान शिव को सबसे पहले फल, शक्कर और मीठे चीजों का भोग लगाया जाता है। यहां पर एक और परंपरा भी है। हिन्दू धर्म के अनुसार पूर्णिमा और संक्रांति के अवसर पर हर महीने में दो बार भगवान शिव को 56 भोग लगाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन तो यहां पर भगवान शिव को खिचड़ी भोग लगाया जाता है।