Header Ads Widget

टीबी से लड़ाई जीत कर गांवों में जागरूकता की अलख जगा रहे हैं आजाद



  • टीबी से लड़ाई जीत कर गांवों में जागरूकता की अलख जगा रहे हैं आजाद
  • अब तक 60 से अधिक मरीजों के समुचित इलाज में निभाई सक्रिय भागीदारी 
  • गांव-मुहल्ले व स्कूली बच्चों को टीबी के खतरे व इससे बचाव की दे रहे हैं जानकारी 
अररिया, 21 सितंबर । 

Son of Simanchal Gyan Mishra 

स्वस्थ व सेहतमंद समाज का निर्माण हर एक व्यक्ति की जिम्मेदारी है। अपने स्तर से किया गया हमारा छोटा सा प्रयास किसी बड़े बदलाव की मजबूत नींव साबित हो सकता है। इस सूत्र वाक्य को आत्मसात कर नरपतगंज के गोखलापुर निवासी 27 वर्षीय मो आजाद टीबी मुक्त भारत अभियान की सफलता में अपनी सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। कभी टीबी से ग्रसित होकर अपने जीवन से जुड़ी सभी उम्मीदें त्याग चुके आजाद अब दूसरे टीबी मरीजों के मन में जीवन के प्रति उत्साह व उम्मीद की किरण बिखेर रहे हैं। आजाद के प्रयास से न सिर्फ गोखलापुर बल्कि नजदीकी अन्य गांव के करीब 60 टीबी मरीज समुचित इलाज के बाद अब पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं। आजाद के इन प्रयासों के विभागीय अधिकारी व कर्मी भी मुरीद हैं। 

अपनी बीमारी के दिनों को याद करते हुए आजाद बताते हैं कि टीबी सिर्फ एक शारीरिक रोग नहीं। यह आपको मानसिक रूप से भी कमजोर बनाता है। टीबी का दर्द तब और बढ़ जाता जब रोग के कारण लोग आपके साथ भेदभाव करना शुरू कर देते हैं। आजाद ने बताया कि वर्ष 2014 में अचानक एक रात उन्हें खांसी होनी शुरू हुई। खांसी इतनी तेज थी कि मुंह से खून आने लगा। इसे देख घर के लोग घबरा गये। जानकारी के अभाव में उन्हें एक ओझा के पास ले जाया गया। लेकिन आजाद की तबियत ठीक नहीं हुई। ग्रामीण चिकित्सकों के स्तर से इलाज का भी आजाद को कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद उन्हें इलाज के लिये सदर अस्पताल लाया गया। जहां जांच में एमडीआर टीबी होने का पता चला। ये जान कर आजाद के हंसते खेलते परिवार पर मानों विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। 

टीबी से ग्रसित होने के बाद आजाद को सामाजिक स्तर पर भेदभाव का सामना भी करना पड़ा। लेकिन परिवारवालों ने उनका भरपूर साथ दिया। एक वक्त परिवार के लोग भी आजाद के जीवित होने की आस छोड़ चुके थे। लेकिन जिला यक्ष्मा केंद्र में कार्यरत जिला टीबी समन्वयक ने पूरे परिवार का हौसला बढ़ाते हुए नियमित दवा सेवन से आजाद के पूरी तरह ठीक होने का भरोसा जताया। नियमित दवा सेवन से आजाद अब पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। 

गांव-मुहल्ले व स्कूली बच्चों को कर रहे हैं टीबी के प्रति जागरूक- 

आजाद बताते हैं कि जब टीबी से वे पूरी तरह ठीक हो गये तो उन्हें जीवन के महत्व का पता चला। इसके बाद उन्होंने गांव-समाज व आस-पास के लोगों को टीबी के प्रति जागरूक करने का निर्णय लिया। ताकि उनकी तरह किसी दूसरे व्यक्ति को टीबी से जुड़ी चुनौतियों का सामना ना करना पड़े। वर्ष 2017 से आजाद टीबी चैंपियन के रूप में अपने व आसपास के गांवों के लोगों को टीबी से बचाव व इसके इलाज के प्रति जागरूक करने की मुहिम से जुटे हैं। वे लोगों को टीबी मरीजों से किसी तरह के भेदभाव की जगह भावनात्मक सहयोग व समर्थन के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित कर रहे हैं। आजाद टीबी से बचाव व इलाज की जानकारी जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। अपनी इस मुहिम में उन्होंने स्कूली बच्चों को भी शामिल किया है। नजदीकी विद्यालयों में जाकर वे स्कूली बच्चों को रोग के खतरे व इससे निजात पाने के उपायों के प्रति जागरूक कर रहे हैं। 

अब तक 60 से अधिक मरीजों का करा चुके है उपचार- 

टीबी चैंपियन मो आजाद बताते हैं कि टीबी से ठीक होने के बाद उन्होंने टीबी चैंपियन के रूप में जरूरी प्रशिक्षण हासिल किया। जिलास्तर पर टीबी चैँपियन की सूची में आजाद का नाम शामिल है। टीबी मरीजों को इलाज संबंधी समुचित सहयोग प्रदान कर रहे हैं। वैसे मरीज जो बीच में दवा छोड़ देते हैं उन्हें दवा सेवन के प्रति प्रेरित करते हैं। कोई नया मरीज मिलने पर उसे सदर अस्पताल लाकर उनका उपचार कराते हैं। अब तक उनके प्रयासों से 60 से अधिक टीबी मरीज पूरी तरह स्वस्थ होकर खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।