कथासार
नाटक में सलम के बच्चों ने अभिनय किया है। नाटक परिवार के साथ-साथ समाज से भी सवाल करता है, कहते हैं एक बच्चा बिगड़ रहा है तो उसमें उसके मां बाप के साथ- साथ उस सभ्य समाज की भी हार है। आज कल बहुत सारे एनजीओ और तथाकथित समाजसेवी हैं जो स्लम बस्ती में जाकर कुछ समान बांटते हैं और उनको लगता है कि एक जिम्मेवार नागरिक के रुप में उनका दायित्व पूरा हो गया, पर क्या उनका दायित्व यह नहीं कि उनके बीच शिक्षा से भी जुड़ी सामाग्री वितरीत करें या शिक्षा के महत्व से संबंधित जानकारी दें? जो उनके लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी है। अगर यह दलित बच्चें पढ़ - लिख कर कुछ बन जायेंगे तो उन्हें यह मुफ़्त की चीजे देने की जरूरत हीं नहीं होगी।
होली, दीपावली,मकर संक्रांति, छठ या किसी अन्य त्योहारों में जाकर कुछ चीज़ें देना उनकी मदद करना अच्छी बात है। फिर सरस्वती पूजा , गणपति पूजा के दिन उनके बीच शिक्षा और ज्ञान का वितरण या जागरूकता क्यों नहीं ? नाटक इन्ही सब ज़रूरी विषयों पर सवाल करता है। आज तो आप इन्हें कुछ चीजे लाकर दे देंगे लेकिन कल को कौन देगा ? जब ये छोटे छोटे बच्चे नशे की गोलियों खाते है, गालियां देते हैं, जुआ खेलते हैं तो कोई भी उन्हें क्यों नहीं बोलता, क्यों नहीं रोकता-टोकता है कि यह गलत आदत है, हम सोचते हैं अरे ये ऐसे ही हैं।
कलाकार
दुर्गा, लक्ष्मी, आर्यन,विक्की,अनोखी,
कोमल,राधिका, कार्तिक, डुग्गू जान्हवी आदि
प्रस्तुती:- वॉइस इंटू थिएटर
संगीत:- राजीव राय
आलेख एवम् निर्देशन :- मंजरी मणि त्रिपाठी