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लोक पंच के स्थापना दिवस पर लोक पंच की प्रस्तुति, नाट्य शिक्षक की बहाली



 "कथासार"
इस नाटक की शुरुआत एक हास्य दृश्य से होता है, इसमें कुछ अभिनेता नाटक के एक दृश्य का पूर्वाभ्यास कर रहे हैं, बार-बार कोशिश करने पर भी दृश्य तैयार नहीं हो पाता है इस दृश्य के माध्यम से दर्शकों को सहज ही पता चल जाता है कि एक निर्देशक को नाटक तैयार करने में कलाकारों के साथ कितनी मेहनत करनी पड़ती है ।



नाटक में रंगकर्मियों के व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष की अलग अलग कहानीयों को दिखाय गया है। जिसमें एक रंगकर्मी के जीवन के उस पहलू को उकेरा गया है जहाँ वो पढ़ाई के बाद भी अपने परिवार और समाज में उपेक्षित है, उन्हें स्कूल, कॉलेज में एक अदद नाट्य शिक्षक की नौकरी भी नहीं मिल सकती क्यूँ की हमारे यहां नाटक के शिक्षकों की बहाली का कोई नियम नहीं है, इस मुखर सवाल पर आकार नाटक दर्शकों के लिए रंगकर्मियों के जीवन संघर्ष से जुड़ा निम्‍न सवाल भी छोड़ जाता है।



मंच पर नाटक खत्म होने के बाद दर्शक तालियां बजाते हैं, स्मृति चिन्ह देकर व ताली बजाकर दर्शक उन्हें सम्मानित करते हैं। यही रंगकर्मी जब अपने घर पहुंचते हैं तो घर में इन से बेहूदा किस्म के प्रश्न पूछे जाते हैं।
क्या कर रहे हो ? नाटक करने से क्या होगा ? लोग तुम्हें लौंडा कहते हैं। नाचने वाला कहते हैं। यह सब करने से रोजी-रोटी नहीं चलेगा . . .
कोई अच्छी घर की लड़की का हाथ तक नहीं मिलेगा। 
इस तरह के अनगिनत ताने सुनने पड़ते हैं फिर भी रंगकर्मी यह सब सहने के बावजूद रंगकर्म करते रहते हैं। 



नाटक के माध्यम से रंगकर्मी सरकार से मांग करते हैं की स्कूल और कालेजों में "नाट्‍य शिक्षक की बहाली" हो। बंद पड़े सरकारी अनुदान को पुनः शुरू किया जाए। सरकार रंगकर्मियों को नौकरी दे, उन्हें रोजगार दे तभी वे भी खुलकर समाज का साथ दे सकते हैं ।


                
पात्र परिचय: 
सूत्रधार :- मनीष महिवाल

"अन्य कलाकार"

रजनीश पाण्डेय 
दीपा दीक्षित  
कृष्ण देव 
देवेन्द्र 
नेहा फातिमा 
रोहित 
मॉडल समीर
अमित अम्मी 
राम प्रबेश्
अभिषेक राज
प्रियांशु
अजित 
"लेखक/निर्देशक: मनीष महिवाल"
संस्था - "लोक पंच", पटना