कोरोना चीन को छेदते हुए विश्व भ्रमण करते हूए भारतवर्ष भी पहुंचा।इसका जन्म वर्ष तो कुंडली में लिखा है।मगर मृत्यु वर्ष अंकित नहीं होने से "कोरोना"की पुण्यतिथि नहीं मनाई जा रही है।भगवान श्रीकृष्ण ने दो वर्ष की आयु में पुतना राझसी का नाश कर दिये थे।मगर कोराना पुतना राक्षसी का रुप धर कर दो वर्ष की अल्पायु में पता नहीं कितने को निगल गई। निगली वह मानव जीवन के साथ-साथ मानव के पर्व-त्योहार, संस्कृति और परम्पराओं को।सीधे अर्थो में वह जीवन चक्र में हीं छेद कर दी।क्या होली-दिवाली,ईद-दशहरा की खुशी में ही छेद कर दी।मगर बिहार आर्ट थिएटर,पटनाऔर रामलीला कमिटी ने मिलकर इस वर्ष दशहरा में कोरोना रुपी पुतना राझसी के मनसुबे मे हीं छेद कर दिया..
विगत दो वर्ष से कोरोना काल के भय से हर हर्ष गांधी मैदान,पटना मे आयोजित होने वाला रावण वध के आयोजन में छेद हो गया था।मगर बिहार आर्ट थिएटर और रामलीला कमिटी राम-लखन की जोड़ी की तरह इस वर्ष दिखा।दोनो मिलकर रामलीला और रावणवध का कालिदास रंगालय मे़ सफल और भव्य आयोजन किया।
इस आयोजन से कई जलनखोर लोगो के ह्रदय में छेद भी हो गया।महानवंमी के दिन लगभग चार घंटे की रामलीला लोग छेद वाली नाक की सांस रोक कर देख रहे थे।हां ध्वनि दोष के कारण कान छेद में संवाद स्पष्ट नहीं आ रहे थे। ध्वनि दोष, स्वप्न दोष की तरह कचोट रहा था।यह दोष साज-सज्जा,प्रकाश व्यवस्था और कलाकरो की मेहनत में बार-बार छेद करते दिखा।पता नहीं कालीदास रंगालय का यह दोष रोग किस वैध -हक़ीम से ठीक होगा?फिर भी कान छेद को ताक पर रखकर एकटक रामलीला की लीला से सब अभिभूत दिखे।
ऐन दशहरा के दिन रावनवध भी हुआ।गांधी मैदान के बड़े मैदान में नही,"बैट" के पीछे छेद भर जगह में।आदमी की मुंड़ी से ज्यादा मिडिया वाले का कैमरा दिख रहा था।लेकिन क्या मजाल है कि परंपरा में कोई छेद हो जाये? मेघनाथ, कुंभकर्ण और रावण की पुतला का तो वध हूआ ही। इतिहास के पन्नो में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाने वाला "कोराना-वध"भी हुआ।ना दिखने वाला उसकी नाभी में छेद कर राम जी उसका वध किये।रामजी के दया से कोरोना का "तीसरा अवतार"ना हो यही कामना रामजी से करते है।हां रह रह कर "जय श्री राम"के नारे से कई गैर भाजपाई लोगो के दिल में छेद हो रहा था।हाल्कि ह्रदय में छेद होते हुए भी उनके मुख से निकल ही जा रहा रहा था "जय श्री राम.…"हिरदा में छेद कैसे नहीं होगा जब गैर हिन्दू मो:सद्दन"आरती की थाल"पकड़े हूए था...
आज भरत -मिलाप है।दिल में छेद रहे तो भी,यह शेर तो सुना ही होगा कि " दिल मिले ना मिले नाथ मिलाते रहिये।तो आईये आज भी कालीदास रंगालय में"भरत-मिलाप"देखने।जिनके पास "पास"नहीं है वह झांकने की व्यवस्था स्वयं कर लेगे।वैसे भी वहां रामलीला हो या रतन थियाम का नाटक। बिरवल चाय दुकान या बाहर संजय पान दुकान पर झांकने वाले झांकते ही रहते है। ऐ झांकने वाले आपकी प्रस्तुति की छेदे-छेद तो करते हीं रहते है।खैर यह सब तो चलता रहता है।हम आपकी आलोचना नहीं करेगें, आप मेरी नहीं करेंगे।तो कोन किसकी आलोचना करेगा जी ?इन सब से परे आज भरत-मिलाप है। देखें आज आरती की थाल मो: सद्दाम पकड़ते हैं या मोहर्तमा मुमताज..? और अधिक जान के लिए पं छेदीलाल शास्त्री कृत "छेद"पुस्तक का आर्डर आमेजन आदि पर आज और अभी ही करा दे🙏🙏🙏