मधुबनी - लदनियां से हरिशचंद्र यादव की रिपोर्ट उर्वरक समेत अन्य उपभोक्ता सामानों को सीमापार ले जाने से रोकने में पुलिस प्रशासन विफल रहा है। लॉकडाउन में भी पूर्व की तरह धंधेबाजों का बोलबाला है।
अनवरत जारी इनके धंधों में रात व दिन कोई मायने नहीं रखते। दिन में दिखाकर व रात में चुराकर जो चाहे ले जाता और ले आता है। कभी कभार पकड़े जाने वालों में ऐसे लोग शामिल रहते हैं, जिन्हें सीमा के सिस्टम की जानकारी नहीं होती है। सम्प्रति तस्करों के लिए उर्वरकों को सीमापार भेजना अधिक फायदेमंद है। तस्करों के मजदूर दिन में किसान बनकर आधी बोरी व रात में पूरी बोरी खाद बधार की पगडंडी से ले जाते हैं।
मजदूर को महज दो सौ मीटर सीमापार जाने का 50 से 100 रूपये मिलते हैं। पकड़ाने पर जमानत की गारंटी होती है। तस्कर के माल नेपाल में डेढ़ से दोगुने दाम पर बिकते हैं। सीमा पर तैनात एसएसबी समेत पुलिस महकमे का इन बातों से अनजान बने रहना, भारतीय लोकतंत्र के दुर्भाग्य को दर्शाता है। यहां का पुलिस प्रशासन निजी स्वार्थपरता में राष्ट्रहित की अनदेखी कर रहा है।
सीमायी कटहा, झलोन, स्थानीय चोर बाजार, मोतनाजय, शिवनगर, लक्ष्मीनियां, दोनवारी, महुलिया, लगडी, योगिया, पिपराही, महुलिया आदि गांव के सैकड़ों लोगों के जीवन का एक मात्र उद्देश्य है, प्रशासन पटाओ, माल टपाओ। इस खेल में कई दुकानदार स्वयं शामिल हैं। सीमा क्षेत्र का एक खाद विक्रेता की माने तो प्रति खाद विक्रेता बदले में प्रति माह बीस हजार उन्हें देता है, जिसका उनपर सीधा अंकुश है।
इसप्रकार तस्करी पर लगाम लगाने में प्रशासन का उदासीन बने रहना चिंतन का विषय है। इस संबंध में पूछे जाने पर स्थानीय एसएसबी बीओपी प्रभारी ने दूरभाष पर बताया कि इसे पूरी तरह रोकने में सीमा का खुला रहना बाधक है। किसान के नाम पर आधी बोरी से एक बोरी तक खाद सीमा की तरफ लेकर लोग जाते हैं। जवानों के नहीं रहने पर सीमा पार निकल जाते हैं।
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